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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विशेष ज्ञान प्राप्त करनेका निषेध रहे। बल्कि यह कि शिक्षा क्रम इन मुद्दोंको ध्यानमें रखकर तैयार न किया जायेगा तो दोनों ही वर्गोको अपने-अपने क्षेत्रोंमें पूर्णता प्राप्त करनेका अवसर न मिलेगा।

मुझे इस सम्बन्धमें भी दो शब्द कहनेकी आवश्यकता है कि स्त्रियोंके लिए अंग्रेजी शिक्षा आवश्यक है या नहीं। मेरा अनुभव तो यह है कि हमारे सामान्य जीवन-क्रममें स्त्री अथवा पुरुष दोनों में से एकके लिए भी अंग्रेजीकी आवश्यकता नहीं है। आजीविका कमाने अथवा राजनीतिक प्रवृत्तिको चलाने के लिए ही पुरुषोंको अंग्रेजी भाषाके ज्ञानकी आवश्यकता हो सकती है। मैं यह नहीं मानता कि स्त्रियोंको नौकरियाँ ढूँढ़ने या व्यापार चलानेकी चिन्ता करनेकी आवश्यकता है। इसलिए यदि कुछ स्त्रियोंको अंग्रेजी भाषाका ज्ञान प्राप्त करना हो तो वे उसे पुरुषोंके लिए स्थापित विद्यालयोंमें प्राप्त कर सकती हैं। स्त्रियोंके लिए स्थापित स्कूलोंमें अंग्रेजीका प्रवेश करना हमारी पराधीनताको लम्बा बनानेका कारण हो जायेगा। मैंने यह बात अनेक लोगोंके मुँहसे सुनी है और अनेक जगह पढ़ी है कि अंग्रेजी भाषामें निहित भारी ज्ञान-कोष पुरुषोंकी भाँति स्त्रियोंके लिए भी उपलब्ध होना चाहिए। मैं नम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि हम इस सम्बन्धमें कुछ भूल कर रहे हैं। मैं यह तो कहता नहीं कि अंग्रेजी भाषाका ज्ञान-भण्डार पुरुषोंके लिए तो खोल दिया जाये किन्तु स्त्रियोंके लिए न खोला जाये । यदि किसीकी रुचि साहित्य पढ़नेकी है तो वह समस्त संसारका साहित्य पढ़े। उससे उसको रोकनेवाला कोई व्यक्ति संसार में जन्मा नहीं है। किन्तु जहाँ समस्त लोक-समुदायकी आवश्यकताओंको ध्यानमें रखकर शिक्षा-क्रम बनाया गया है, वहाँ ऊपर बताये गये साहित्य-प्रेमियोंके लिए कोई योजना नहीं बनाई जा सकती। ऐसे लोगोंके लिए उन्नति-कालमें यूरोपकी भाँति हमारी पृथक्-पृथक् संस्थाएँ होंगी। एक सुव्यवस्थित शिक्षा-क्रमके अन्तर्गत जब बहुतसे स्त्री-पुरुष शिक्षा लेने लग जायेंगे और अशिक्षित लोग अपवाद माने जायेंगे तब अन्य भाषाओंके साहित्यके रसका स्वाद चखानेवाले हमारी भाषामें ही दलके-दल निकल आयेंगे। यदि हम साहित्य रस सदा अंग्रेजी भाषासे ही लेते रहेंगे तो हमारी भाषा सदा निष्प्राण बनी रहेगी अर्थात् हमारी जाति सदा निष्प्राण बनी रहेगी। यदि आप मुझे इस उपमाके लिए क्षमा कर दें तो मुझे कहना चाहिए कि पराई भाषामें से आनन्द प्राप्त करनेका स्वभाव ऐसा ही है जैसा किसी चोरका चुराये हुए मांसमें से आनन्द लेनेका स्वभाव। पोपने 'इलियड' में से जो आनन्द प्राप्त किया वह उसने अपनी जातिको अद्भुत अंग्रेजीमें दिया। फिट्जेराल्डने उमर खय्यामकी रुबाइयोंमें से जो आनन्द प्राप्त किया उसे ऐसी प्रभावशाली अंग्रेजी में प्रस्तुत किया कि उनके काव्यको लाखों अंग्रेज 'बाइबिल' की भांति सँजोकर रखते हैं। एडविन आर्नोल्डने 'भगवद्गीता' में से रसपान किया; किन्तु उन्होंने उस रसका पान करनेके लिए अंग्रेज लोगोंसे संस्कृत पढ़नेका आग्रह नहीं किया, बल्कि अंग्रेजी भाषामें अपनी आत्माको उँडेलकर संस्कृत अथवा पालीके साथ उपयुक्त अंग्रेजीमें उस रसको प्रस्तुत करके अंग्रेज लोगोंको उसका पान कराया। चूंकि हम बहुत पिछड़ गये हैं, इसलिए हममें ऐसी प्रवृत्ति बहुत अधिक होनी चाहिए। यह प्रवृत्ति तभी सम्भव होगी जब हम अपना शिक्षा-क्रम वैसा बना लेंगे जैसा मैंने ऊपर बताया है और उसपर दृढ़तापूर्वक कायम रहेंगे। यदि हम अंग्रेजीका झूठा मोह त्याग सकें और अपनी अथवा अपनी भाषाकी