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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे तो यह बात बिलकुल स्वयंसिद्ध-सी लगती है कि अन्यायके खिलाफ अपनी भावना प्रकट करने के लिए नम्रतापूर्वक लगान देनेसे इनकार करने और सरकारको उसे जबरदस्ती वसूल करने देनेमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है ।

आपका,
मोहनदास

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

१३१. भाषण : अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी सभामें[१]

साबरमती
फरवरी २६, १९१८

आज तालाबंदीका पाँचवाँ रोज है। आपमें से कई मानते होंगे कि पाँच-पन्द्रह दिन दुःख सह लेने से सब कुछ ठीक हो जायेगा । मैं आपसे बार-बार कहता हूँ कि हम यह उम्मीद जरूर रखें कि हमारा काम कुछ ही दिनोंमें पूरा हो जायेगा, लेकिन इसके साथ ही हमारा यह दृढ़ निश्चय भी हो कि यदि हमारी आशा पूरी न होगी तो हम मर मिटना कबूल करेंगे, लेकिन कामपर हरगिज न जायेंगे। मजदूरोंके पास रुपये-पैसे नहीं हैं, लेकिन रुपये-पैसेसे भी अधिक कीमती धन उनके पास है, और वह है, उनके हाथ-पैर, उनकी हिम्मत, और उनकी आस्तिकता । ऐसा समय भी आ सकता है, जब आपको भूखों मरना पड़े। उस वक्त के लिए आपको यह विश्वास रखना चाहिए कि आप लोगोंको खिलाकर ही हम खायेंगे, आपको भूखों हरगिज न मरने देंगे ।[२]

कई भाई कहते हैं कि हम ३५ प्रतिशतसे ज्यादा माँग सकते हैं। मैं तो कहता हूँ कि आप १०० प्रतिशत भी माँग सकते हैं। लेकिन यदि आप उतना माँगने लगें, तो वह अन्याय ही कहा जायेगा । मौजूदा हालत में आपने जो कुछ माँगा है, उसीमें सन्तोष रखिए। यदि आप इससे ज्यादा माँगेंगे, तो मुझे दुःख होगा। हमें किसीके भी सामने कोई गैरवाजिब माँग पेश नहीं करनी चाहिए। मेरी राय में ३५ प्रतिशतकी माँग मुनासिब माँग है।[३]

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध
 
  1. हड़तालके दिनों में हड़ताली मिल मजदूर प्रतिदिन शामको साबरमतीके किनारे, एक बबूलके झाडके नीचे, इकट्ठे हो जाते थे और गांधीजी उनकी समामें भाषण करते थे ।
  2. मजदूरोंके सलाहकारोंने ऐसी शपथ ली थी ।
  3. भाषणका शेषांश उपलब्ध नहीं है। गांधीजी मूक भाषणों की रिपोर्ट जानबूझकर समाचारपत्रोंको नहीं दी जाती कार्यको ज्यादा महत्त्व देते थे इसलिए थी। गांधीजीके इन भाषणों या प्रवचनक अंश महादेव देसाईने अपनी पुस्तक एक धर्मयुद्ध में दिये हैं । महादेव देसाईने अपनी डायरीमें लिखा है: उस बबूल के वृक्षके तले कितने ऐतिहासिक प्रसंग घंटे इसका ज्ञान इन सभाओं में उपस्थित लोगोंक अतिरिक्त शायद ही अन्य व्यक्तियोंको रहा हो ।