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१३२. प्रवचन : आश्रममें प्रातःकालीन प्रार्थनाके बाद[१]

फरवरी २७, १९१८

में कहता आया हूँ कि सत्याग्रह केवल सरकारके विरुद्ध ही नहीं किया जा सकता, वह किसी भी [ अन्यायपूर्ण ] स्थितिमें किसीके भी विरुद्ध किया जा सकता है। इसके उदाहरण हम आज देख रहे हैं। खेड़ामें सरकारके विरुद्ध सत्याग्रह चल रहा है, अहमदाबाद में धनिकोंके विरुद्ध सत्याग्रह चल रहा है और अस्पृश्योंके प्रश्नपर शास्त्रोंके विरुद्ध सत्याग्रह चल रहा है। मेरा यह खयाल है कि इन सब मामलोंमें जीत हमारी ही होगी । सत्य हमारे ही पक्षमें है । खेड़ामें सरकारने उद्धततासे काम लिया है। उसके विरुद्ध सत्याग्रह किये बिना काम नहीं चल सकता था। अगर उसमें हमारी जीत नहीं होगी, तो इसका कारण केवल हमारी ही अपूर्णता होगी, सत्याग्रहकी अपूर्णता नहीं । बिहारमें सत्याग्रहकी विजय हुई। उसका कारण यह था कि वहाँ मुझे कार्यकर्ता बहुत ही पवित्र मिल गये थे । यहाँ में देखता हूँ कि इतनी पवित्रता नहीं है। फिर भी मुझे, जितना में सोचता था, उससे अधिक मिल रहा है । अहमदाबादमें जो स्थिति हो गई है, वह भी अच्छी है । कल कलक्टरने मुझसे एक बात कही थी । उसे आप सबसे कहनेका जी हो रहा है। यह बात मैंने कहीं अन्यत्र नहीं कहीं है। मुझे इस बातको आश्रममें कहना ठीक लगता है। कलक्टरने यह बात कहने भरके लिए नहीं कही, बल्कि ये उनके हृदय के सच्चे भाव थे । उन्होंने कहा 'मिल-मालिकों और मजदूरोंके बीच इतने स्नेहसे हुई लड़ाई मैं अपनी जिन्दगी में पहले-पहल यहीं देख रहा हूँ ।' मुझे भी ऐसा लगता है कि दोनों पक्षोंके बीच इतना अच्छा सम्बन्ध कभी नहीं देखा गया । तुम देखते हो कि अम्बालाल भाई[२] इस लड़ाई में विरोधी पक्षके हैं, फिर भी कल खाना खाने आये थे और मैंने जब फिर कहा कि कल आपको भोजन यहीं करना है, तब वे स्थिति समझ गये । वे समझ गये कि भोजनके लिए क्यों कह रहा हूँ। और उन्होंने तुरन्त ही यह बात मंजूर कर ली। इससे अधिक अच्छी बात और क्या हो सकती है ? मेरा खयाल है कि हममें अवसर के अनुरूप दृढ़ता, पवित्रता और एकाग्रता होगी, तो हम हारेंगे नहीं। यह आन्दोलन जो चल रहा है, उससे मैं तुम सबको परिचित नहीं रख सकता; इसलिए अपरिचित रहनेमें ही तुम्हारा संयम है । इतना ही है कि इस स्थितिमें जरूरत पड़े तो हम काम करनेके लिए तैयार रहें। इसके लिए हमें अपने भीतर दृढ़ता और संयम ही पैदा करने हैं।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. गांधीजी आश्रम में प्रार्थनाके पश्चात् प्रायः प्रवचन किया करते थे ।
  2. अम्बालाल साराभाई ।