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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह लड़ाई सिर्फ ३५ प्रतिशत बढ़ोतरी पानेके लिए नहीं है, बल्कि यह साबित करनेके लिए है कि मजदूर अपने हकके लिए मुसीबतें उठानेको तैयार हैं । यह लड़ाई अपनी टेककी रक्षाके लिए है। हम अपनी तरक्कीके खयालसे, यानी अच्छे बनने के लिए, इसे चला रहे हैं। अगर हम सार्वजनिक धनका दुरुपयोग करते हैं, तो अच्छे बननेके बदले बिगड़ते हैं । अतएव हम किसी भी तरह सोचें, नतीजा यही निकलेगा कि हमें मजदूरी करके ही अपना पोषण करना है। शीरींके खातिर फरहादने पत्थर तोड़े थे । मजदूरोंकी शीरीं उनकी टेक है, उसके लिए वे पत्थर क्यों न फोड़ें ? सत्यके लिए हरिश्चन्द्र बिके। अगर मजदूरी करनेमें दुःख है तो क्या अपने सत्यके लिए मजदूर उतना दुःख न सहेंगे ? टेककी खातिर हजरत इमाम हसन और हुसैनने बड़ी-बड़ी तकलीफें उठाईं। हम अपनी टेक निबाहने के लिए क्यों न मरनेको तैयार रहें? हमें घर बैठे पैसे मिलें, और उनपर हम लड़ें, तो यह कहना ही गलत होगा कि हम लड़े ।

इसलिए हमें उम्मीद है कि हरएक मजदूर अपनी टेककी रक्षाके लिए मजदूरी करके अपना पेट पालेगा और दृढ़ रहेगा। अगर यह लड़ाई देर तक चली, तो उसका कारण हमारी कमजोरी ही होगी। जबतक मिल मालिकोंको यह ख्याल रहेगा कि मजदूर दूसरी मजदूरी नहीं करेंगे और आखिर हार जायेंगे, तबतक वे पसीजेंगे भी नहीं और विरोध करते रहेंगे। जबतक उन्हें यह विश्वास न हो जायेगा कि मजदूर अपनी टेक कभी छोड़ेंगे ही नहीं, तबतक उन्हें दया नहीं आयेगी और वे अपने मुनाफेसे हाथ धोकर भी विरोधी बने रहेंगे। जिस दिन उन्हें विश्वास हो जायेगा कि मजदूर अपनी टेक किसी भी दशा में नहीं छोड़ेंगे, उस दिन वे जरूर पसीजेंगे और तब वे मजदूरोंका स्वागत करेंगे। आज तो उनका यह खयाल है कि मजदूर दूसरी मजदूरी करेंगे ही नहीं, और आज या कल घुटने टेक देंगे । अगर मजदूर अपने गुजारेके लिए दूसरोंके पैसेका सहारा लेंगे, तो मालिक सोच लेंगे कि यह पैसा तो किसी-न-किसी दिन खत्म होने ही वाला है । इसलिए वे मजदूरोंको न्याय न देंगे । जिन मजदूरोंके पास खाने-पीनेका साधन नहीं है, वे अगर मजदूरी करने लग जायेंगे, तो मालिक भी समझ लेंगे कि जल्दीसे ३५ प्रतिशत इजाफा न दिया, तो वे मजदूरोंको हाथसे खो बैठेंगे। इस तरह लड़ाईको बढ़ाने या घटानेवाले हम ही हैं। इस समय ज्यादा दुःख सहकर हम जल्दी छुटकारा पा सकते हैं। अगर दुःख नहीं सहेंगे, तो लड़ाई जरूर आगे बढ़ेगी। हमें आशा है कि इन सब बातोंको सोचकर जो आज कच्चे पड़ गये हैं, वे झट पक्के बन जायेंगे ।

खास सूचना

कुछ मजदूरोंका यह खयाल हो गया है कि जो कमजोर पड़ गये हैं, उनको शहजोर बनने के लिए समझाया नहीं जा सकता । यह खयाल बिलकुल अनुचित है । जो किसी भी कारणसे कच्चे पड़ गये हैं, उनको विनयपूर्वक समझाना हममें से हरएकका काम है । जो लड़ाईसे वाकिफ नहीं हैं, उन्हें समझाना भी हमारा काम है। हमारा कहना तो यह है कि हमें किसीको धमकाकर झूठ बोलकर, मारकर या दूसरा कोई दबाव डालकर रोकना नहीं है। जो समझानेपर भी न समझें और कामपर जाना चाहें, वे