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भाषण : अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी सभा में

भले जायें। हमें उससे बिलकुल निडर रहना है। जबतक एक भी आदमी बाहर रहेगा, हम कभी उसका साथ नहीं छोड़ेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध


१७४. भाषण : अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी सभा में

[ मार्च १५, १९१८][१]

आप लोगोंको पता चला होगा कि आज सुबहकी सभामें क्या-क्या हुआ । कइयोंको बड़ा सदमा पहुँचा; कई रो पड़े। मैं नहीं समझता कि सुबह जो कुछ हुआ, वह गलत हुआ या शरमाने जैसा हुआ । जुगलदासकी चालवालोंने जो टीका की,[२] उससे मुझे गुस्सा नहीं आया, उलटे उससे तो मुझे अथवा जिन्हें हिन्दुस्तानकी कुछ सेवा करनी है उनको, बहुत-कुछ समझ लेना है । मैं मानता हूँ कि अगर हमारी तपस्या, यानी समझकर दुःख सहनेकी शक्ति, सच्ची है, तो वह कभी निष्फल नहीं हो सकती- उसके सुफल फलकर ही रहेंगे। मैंने आपको एक ही सलाह दी । आपने उसके अनुसार प्रतिज्ञा ली । इस युगमें प्रतिज्ञाका मूल्य, टेककी कीमत, नष्ट हो गई है। लोग जब चाहते हैं और जिस तरह चाहते हैं, ली हुई प्रतिज्ञा तोड़ देते हैं, और इस तरह प्रतिज्ञाका पानी उतार देनेसे मुझे दुःख होता है । साधारण आदमीको बाँधने के लिए प्रतिज्ञासे बढ़कर दूसरी कोई डोर नहीं । परमात्माको अपना साक्षी बनाकर जब हम किसी कामको करनेके लिए तैयार होते हैं, तो वही हमारी प्रतिज्ञा हो जाती है । जो उन्नत हैं, वे बिना प्रतिज्ञाके भी अपना काम चला सकते हैं। लेकिन हमारे समान अवनत या पिछड़े हुए लोग वैसा नहीं कर सकते । हम लोगों के लिए, जो जीवनमें हजारों बार गिरते हैं, इस तरहकी प्रतिज्ञाओंके बिना ऊपर चढ़ना असम्भव है । आप मंजूर करेंगे कि अगर हमने प्रतिज्ञा न ली होती और रात-दिन उसका रटन न किया होता, तो हममें से बहुतेरे कभीके फिसल चुके होते । आप लोगोंने ही मुझसे कहा है कि इससे पहले इतनी शान्तिसे चलनेवाली कोई हड़ताल आपने नहीं देखी । फिसलने या हारनेका कारण पेटकी आग है । मेरी सलाह है कि आप लोगोंको पेटकी इस आँचको सहकर भी अपनी टेकपर कायम रहना चाहिए। इसके साथ ही मेरी और मेरे साथ काम करनेवाले भाई-बहनोंकी भी यह प्रतिज्ञा है कि किसी भी दशामें हम आपको भूखों न मरने देंगे। अगर हम अपने सामने आपको भूखों मरने दें, तो आपका फिसलना पीछे हटना —स्वाभाविक है । इस तरहकी दुहरी सलाह के साथ एक तीसरी चीज़ और रह जाती है । वह यह कि हम आपको भूखों न मारें, बल्कि आपसे भीख मँगवायें। अगर हम ऐसा करते हैं, तो भगवान् के सामने गुनहगार ठहरते

 
  1. जिस दिन उपवास शुरू हुआ उस दिन शामको यह भाषण दिया गया था ।
  2. एक दिन पूर्व जब छगनलाल गांधी इस चालमें रहनेवाले मजदूरोंसे सुबह की सभामें आनेका अनुरोध करनेके लिए वहाँ गये थे तब उन लोगोंने ताना मारते हुए कहा था : “गांधीजी और अनसूषा बेनका क्या? उन्हें तो मोटर में आना और मोटर में जाना और बढ़िया-बढ़िया खाना-पीना । लेकिन हम तो मर रहे हैं । निरे सभाओं में उपस्थित होनेसे पेट थोड़े ही भर सकता है ।"