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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतिशत वृद्धि दे दें। मेरी इच्छा तो यही है कि यदि उन्हें न्याययुक्त मालूम हो, तो ही वे ३५ प्रतिशत वृद्धि दें, दयाभावसे कुछ भी न दें। फिर भी उसका स्वाभाविक परिणाम वही होगा और उस हृदतक यह प्रतिज्ञा मेरे लिए लज्जाजनक ही है। किन्तु मैंने दो बातोंका विचार किया : अपनी लज्जाका और मजदूरोंकी प्रतिज्ञाका । पलड़ा दूसरी तरफ झुका और मैंने मजदूरोंके लिए लज्जाका भार उठा लेनेका निश्चय किया। सार्वजनिक कार्य करनेमें इस तरहको लज्जाका भार उठानेके लिए भी मनुष्यको तैयार रहना चाहिए। इस प्रकार मेरी प्रतिज्ञा मिल-मालिकोंके लिए धमकीके रूपमें है ही नहीं और मैं तो यही चाहता हूँ कि मिल-मालिक साफ तौरपर इस बातको समझें और यदि मजदूरोंकी माँग न्यायपूर्ण प्रतीत हो, तो ही उनको ३५ प्रतिशत वृद्धि दें। मजदूरोंसे मेरी यह प्रार्थना है कि वे मिल-मालिकोंके पास जाकर उनसे यही बात कहें ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


१७८. अम्बालाल साराभाईको लिखे पत्रका अंश

साबरमती
[ मार्च १७, १९१८]

मुझे जिमानकी इच्छाके बदले आप अपनी न्यायवृत्तिका अधिक खयाल रखियेगा । मेरा उपवास मेरे लिए तो अतिशय आनन्ददायक है। अतएव मित्रोंके उससे दुःखी होनेकी कोई वजह में नहीं देखता। मजदूरोंको जो न्यायपूर्वक मिलेगा, वही अच्छी तरह हजम होगा - अधिक निभेगा। सामान्य मनुष्योंको तो साफ बात ज्यादा अच्छी लगती है। ३५ प्रतिशत, २० प्रतिशत और पंच - यह सारी 'मूर्खता, अपने धर्म या गर्व' की रक्षाके लिए हम कर सकते हैं, सह सकते हैं। मजदूर इसे प्रपंच मानेंगे, क्योंकि वे सरल हैं। इसलिए मुझे अधिक अच्छा तो तब मालूम होगा, जब दूसरा कोई बेहतर रास्ता मिले। 'आप ऊपरकी शर्तें मंजूर कराना चाहेंगे, तो मैं उन्हें भी मंजूर करूँगा, पर जल्दबाजी न होने दूँगा।' पंच मिलकर तुरन्त ही फैसला कर डालें और उन्हीं दरोंका हम ऐलान करें, यानी पहले दिन ३५, दूसरे दिन २० और तीसरे दिन पंच-फैसलेके मुताबिक । इसमें भी मूर्खता तो है, लेकिन स्पष्टता भी है। तीसरे दिनके आंकड़ेका ऐलान आज ही करना होगा ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध