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१. पत्र: कोतवालको

मोतीहारी

आश्विन बदी ९ [अक्तूबर ९, १९१७][१]

भाईश्री कोतवाल,[२]

आपका पत्र मिला। आपको भी मेरा तार[३] मिल गया होगा। मैं जवाब तो तुरन्त लिख देना चाहता था, लेकिन लिख नहीं सका। उसके बाद भाग-दौड़में ही रहा, और जवाब नहीं दे पाया।

आपको बहुत दुःख सहना पड़ा है। लेकिन, अगर इसका अच्छा अर्थ लगायें तो आप अपनेको गढ़ सकेंगे। बेटी गई, माँ गई। अब तो चाहे बेटी कहिए चाहे माँ, सब-कुछ भारत ही है। आप उससे बहुत-कुछ पा सकते हैं, उसे बहुत-कुछ दे सकते हैं। और उसे जितना देंगे, उससे सौ गुना अधिक पा सकेंगे। वह कामधेनु है, लेकिन यदि आप उसे घास-भूसा भी नहीं देंगे तो वह दूध कहाँसे देगी? उसे क्या दें और कैसे दें, इसका निश्चय तो जब आप यहाँ आयेंगे तभी किया जायेगा।

अगर आप आ जायें तो २० तारीख तक तो मैं यहीं हूँ। उसके बाद कुछ व्यस्तता रहेगी।

मेरा एक भाषण[४] इस समय मेरे पास है, उसे तो भेज देता हूँ। दूसरोंकी प्रतियाँ मिल जायेंगी तो भेज दूँगा।

मेरे साथ बा है, देवदास और अवन्तिकाबेन हैं। उनके पति भाई बबन गोखले तथा कुछ अन्य लोग भी साथमें हैं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ३६१३) की फोटो-नकलसे।

 
  1. चम्पारनके नील-उत्पादनके काममें लगे किसानोंकी स्थितिकी जाँच समाप्त होनेके बाद गांधीजी ८ अक्तूबर की रातको रांचीसे मोतीहारी आये थे।
  2. दक्षिण आफ्रिकाके टॉल्स्टाय फार्ममें गांधीजीके साथी।
  3. उपलब्ध नहीं हैं।

१४-१