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२. भाषण : सच्ची गोरक्षापर[१]

बेतिया
[अक्तूबर ९, १९१७ के आसपास][२]

गोरक्षिणी सभाने मुझे इस शहरमें गोशालाका शिलान्यास करनेका काम सौंपा है, इसके लिए मैं सभाका और आप सबका आभार मानता हूँ। हिन्दुओंकी दृष्टिमें यह कार्य बहुत पवित्र है। गायकी रक्षा करना हर भारतीयका मुख्य कार्य है। फिर भी इस महान् कार्यको करनेकी हमारी जो पद्धति है, उसमें मैंने अनेक दोष पाये हैं। इस महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर मैंने थोड़ा-बहुत विचार किया है। आपकी इजाजतसे मैं उसे आपके सामने रखना चाहता हूँ।

आजकल गोरक्षाके दो ही अर्थ रह गये हैं। एक तो यह कि बकरीद आदिके अवसरोंपर गोमाताको अपने मुसलमान भाइयोंके हाथोंसे छुड़ाना और दूसरा यह कि दुर्बल गायोंके लिए गोशालाएँ बनवाना।

मुसलमान भाइयोंके हाथोंसे गोमाताकी रक्षा करनेका हमारा तरीका ठीक नहीं है। उसका परिणाम यह हुआ है कि भारतकी इन दो बड़ी जातियोंके बीच हमेशा वैर-भाव और अविश्वास बना रहता है; और कहीं-कहीं तो इन दोनोंके बीच मारपीट भी हो जाती है। अभी हालमें ही शाहाबाद जिलेमें जो मारपीट हुई थी, वह मेरे इस कथनका समर्थन करती है। यह ऐसा प्रश्न है, जिसपर दोनों जातियोंको गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। सैकड़ों हिन्दू भाइयोंने निरपराध मुसलमान भाइयोंके घरबार लूटकर भारी ऊधम मचाया। इसमें पुण्यकी तो गुंजाइश ही कैसे हो सकती है? वह घोर पापका काम था।

गोरक्षिणी सभाके कार्योसे, दरअसल, गायोंकी रक्षा होनेके बदले उनकी हानि ही अधिक होती है। अहिंसाको हिन्दू धर्ममें मुख्य स्थान दिया गया है। गायकी रक्षा करनेके लिए मुसलमानकी हत्या करना बिलकुल अधर्म है। अगर हम चाहते हों कि उनके हाथों गायकी हत्या न हो, तो उनका हृदय-परिवर्तन करनेकी जरूरत है। यह काम हम जोर-जबरदस्तीसे नहीं कर सकते। हमें तो प्रार्थना और नम्रताके बलपर उनके हृदयमें प्रवेश करना है। इस प्रकार उनके अन्तरके दयाभावको जाग्रत करके हम यह कार्य सिद्ध कर सकते हैं। इस तरह काम करनेके लिए हमें यह प्रतिज्ञा लेनी होगी कि मैं गोरक्षाके लिए काम करूँगा, और ऐसा करने में मुसलमान भाइयोंके प्रति द्वेष या वैर-

  1. यह भाषण बेतिया (चम्पारन, बिहार) में गोरक्षिणी सभाके तत्त्वावधानमें आयोजित सभामें दिया गया था। स्पष्ट है, गांधीजीने यह भाषण हिन्दी में दिया होगा, लेकिन हिन्दी-पाठ उपलब्ध न होनेके कारण इसे गुजरातीसे पुन: अनूदित करके दिया जा रहा है।
  2. भाषणमें शाहाबाद (बिहार) के हिन्दू-मुस्लिम दंगेका उल्लेख है। यह दंगा सन् १९१७ में २७ सितम्बर से ९ अक्तूबरके बीच हुआ था। भाषणकी तिथिका अन्दाज उसीके आधारपर किया गया है।