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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही हमलेका सामना करनेमें अपनी सारी शक्ति लगा दे; किन्तु जब उसके साथ ही दूसरे हमले हो रहे हों, तो यह कैसे हो सकता है कि वह उनकी उपेक्षा करके अपने विनाशको निमन्त्रण दे? यह तो स्पष्ट है कि सुरक्षा यथाशक्ति सभी हमलोंका सामना करनेमें ही है। मेरी स्थिति लगभग ऐसी ही है। चारों तरफसे आफतमें पड़े हुए लोग मुझे पुकार रहे हैं। जब मैं उपाय जानता हूँ, तब मदद देनेसे कैसे इनकार कर सकता हूँ?

अहमदाबादकी हड़तालसे मुझे जीवनके कीमतीसे-कीमती सबक मिले। तालेबन्दीके दिनों प्रेमकी शक्तिका जो चमत्कारक प्रदर्शन हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। ज्यों ही मैंने उपवास की घोषणा की, त्यों ही मेरे सामने बैठे हुए विशाल जन-समुदायको ईश्वरके अस्तित्वका भान हुआ। तुम्हारा तार सबसे अधिक भावनापूर्ण और सबसे अधिक सच्चा था। ये चार दिन मेरे लिए शान्ति, ईश्वरीय कृपा और आध्यात्मिक उन्नतिके थे। इन दिनों खानेकी मुझे जरा भी इच्छा नहीं हुई।

मैंने अखबारोंको[१] जो पत्र भेजा है, उससे तुम खेड़ाका प्रकरण तो समझ ही गई होगी। अपने उपवासके बारेमें भी मैंने एक पत्र लिखा[२] था। ये पत्र तुमने न देखे हों, तो मुझे बताना।

तुम्हारी तबीयत अच्छी होगी। जिगरकी शिकायतोंमें उपवाससे बढ़कर कोई दवा नहीं है।

मुझे अहमदाबादके, बल्कि साबरमतीके पतेसे लिखना।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

२१२. पत्र : दुर्गा देसाईको

[बोरसद]
अप्रैल ८, १९१८

चि. दुर्गा,[३]

तुम मुझे भूल गई हो, तो भले ही भूल जाओ, मैं तो तुम्हें नहीं भूला। आनन्दी-बहनने[४] तुम्हारे समाचार दे दिये हैं। मेरा खयाल था, तुम भाई महादेवसे इससे भी अधिक अरसे तक जुदा रही हो। मैंने उनसे कह दिया है कि वे वहाँ जब चाहें तब जा सकते

  1. देखिए “वक्तव्य: खेड़ाको परिस्थितिके बारेमें अखबारोंको”, २८-३-१९१८।
  2. देखिए “पत्र: अखबारोंको”, २७-३-१९१८।
  3. महादेव देसाईंको पत्नी, जिन्होंने १ फरवरीसे भीतीहरवा-चम्पारनकी शालामें पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने छः मासके लिए काम करना स्वीकार किया था।
  4. चम्पारनमें काम करनेवाली एक अध्यापिका।