हैं। किन्तु यदि तुम चाहो तो मैं उन्हें वहाँ तुरन्त भेजनेके लिए तैयार हूँ। अलबत्ता भाई महादेवको यहाँ जबरदस्त अनुभव मिल रहे हैं। उनका लाभ तुम्हें भी मिलेगा। तुम इससे सन्तोष करके वियोगके दुःखका शमन कर सको, तो भाई महादेव यहाँ रुके रहें। मगर उसमें एक खतरा यह है कि अगर मैं इससे भी बड़ी लड़ाईमें जुट जाऊँ, तो फिर तुम चाहो, तो भी वे वहाँ नहीं आ सकेंगे। इसलिए उनके लिए तुमसे मिल आनेका ठीक समय यही होगा। यदि तुम वहाँ ऊब गई हो, तो यहाँ आ सकती हो। किन्तु तुम नड़ियाद में रह सकोगी, इसमें मुझे कुछ शक है। जो-कुछ तुम्हें वहाँ मिल रहा है, वह यहाँ हर्गिज नहीं मिलेगा। फिर भी जिसमें तुम प्रसन्न रहो, मैं वही करना चाहता हूँ।
बापूके आशीर्वाद
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
२१३. पत्र: हरिभाई देसाईको[१]
[बोरसद]
अप्रैल ८, १९१९
आपको पत्र लिखनेका विचार बहुत दिनसे कर रहा था; किन्तु अवकाश ही नहीं मिलता था; बात कुछ ध्यानसे भी उतर गयी थी। आशा है, आप मुझे इसके लिए क्षमा करेंगे।
मैं यह कहनेकी इजाजत चाहता हूँ कि भाई महादेवको मुझे सौंपने में आपने भूल नहीं की है। उनके जीवनके विकासके लिए यह अनुभव जरूरी था। पैसा ही हमेशा सब सुख नहीं देता। भाई महादेवकी ऐसी प्रकृति नहीं है कि उन्हें पैसा सुख दे सके। मुझे लगता है कि जैसी वृत्ति भाई महादेवकी है, वैसी ही चि० दुर्गाकी भी हो जायेगी। उसे अमूल्य अनुभव मिल रहे हैं।
मुझे तो दोनोंके मिलनेसे लाभ ही हुआ है। भाई महादेवने मुझे बहुत-सी झंझटोंसे मुक्त कर दिया है। मैं उनके जैसे चरित्रवान्, विद्वान् और प्रेमी सहायककी खोज कर रहा था। भाई महादेवने मेरी खोज सफल कर दी है। मुझे सपने में भी खयाल न था कि चि० दुर्गाका इतना अधिक सदुपयोग कर सकूँगा। ईश्वरकी गति न्यारी है।
मैं चाहता हूँ और आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस दम्पतीको चिन्ता न करें और उसे पूर्ण आशीर्वाद दें।
आपका,
मोहनदास गांधी
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
- ↑ महादेव देसाई के पिता।