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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जोर देकर कहता हूँ कि चाहे जितना दुःख उठाकर भी प्रतिज्ञाका पालन करेंगे तो आपकी विजय होगी―अवश्य होगी।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२३०. पत्र: जे० एल० मैफीको

नडियाद
अप्रैल १४, १९१८

आप स्वयं देखेंगे कि उपर्युक्त पत्रका[१] मसविदा ११ तारीखको तैयार किया गया था। इतने दिनों तक मैं उसे रोके रहा। परन्तु मैं महसूस करता हूँ कि अपने विचार स्पष्ट रूपमें आदरके साथ पेश करके ही मैं राज्यकी अधिकसे-अधिक सेवा कर सकता हूँ। पिछले चार दिनोंके दौरान संघर्षने गम्भीरतर रूप धारण कर लिया है। इस तथ्यने पत्र भेजनेके मेरे संकल्पको और भी दृढ़ बना दिया है। मैं पूरी विनम्रताके साथ लॉर्ड चैम्सफोर्डसे अनुरोध करता हूँ कि [अली] भाइयोंको छोड़ ही न दिया जाये बल्कि उनको और श्री तिलकको भी, परिषद्में शामिल कर लिया जाये। वे राज्यके शत्रु कतई नहीं हैं। उनकी सहायता लिये बिना आप भारतको सन्तुष्ट नहीं रख सकते।

[हृदयसे आपका,]

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम: पॉलिटिकल―ए: जून १९१८, संख्या ३६०

२३१. पत्र: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ को[२]

नडियाद
अप्रैल १५, १९१८

सम्पादक,
‘बॉम्बे क्रॉनिकल’
महोदय,

खेड़ाके किसानों[३] के समक्ष दिये गये कमिश्नरके गुजराती भाषणका सारांश प्रकाशित हो चुका है, इसलिए खेड़ाके किसानों और कार्यकर्त्ताओं दोनोंके प्रति न्याय करनेके लिए आवश्यक हो गया है कि भाषणका उत्तर दिया जाये।

  1. उल्लेख १० अप्रैलके पत्रका है, जिसे इस टिप्पणीके साथ भेजा गया था।
  2. लगता है कि यह पत्र प्रकाशनके लिए सभी समाचारपत्रोंको भेजा गया था। यह यंग इंडिया, १७-४-१९१८ में भी प्रकाशित हुआ था।
  3. गांधीजीकी सहायतासे १२ अप्रैलको अहमदाबाद में बुलाई गई एक सभामें जिलेके लगभग २,००० प्रमुख किसान एकत्रित हुए थे। कलक्टर और अन्य माल अधिकारी भी उसमें उपस्थित थे। गांधीजीने पहले