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भाषण: नडियादमें

सम्बन्ध बाप और बेटे जैसा है, गुलाम और मालिक जैसा नहीं। बापके अन्यायका विरोध करना बेटेका धर्म है। जिन लोगोंने प्रतिज्ञा ली है, उनको मेरी सलाह है कि वे उसका पालन अन्त तक करें। आपकी जब्त की हुई जमीनें आपको जबतक वापस न मिल जायेंगी मैं तबतक लड़ता रहूँगा। जबतक मेरे शरीरमें प्राण हैं मैं तबतक लड़ना बन्द नहीं करूँगा। हाँ, इस लड़ाईमें आपको शामिल रहना चाहिए। यदि आप जमीनोंकी जब्ती बरदाश्त कर लेंगे तो मैं आपके साथ ही हूँ। हरिश्चन्द्रने बहुत कष्ट सहे, वे नीचके घर बिके और उनका सर्वस्व चला गया; किन्तु वे सत्यपर कायम रहे। मुझे आशा है कि आप सभी हरिश्चन्द्र निकलेंगे। और यह मेरा अटल विश्वास है कि धर्मकी साधनाका उपाय धर्माचरण करना है, भजन गाना और कीर्तन करना-भर नहीं। हमें आत्मज्ञान अर्थात् आत्मशक्तिका ज्ञान प्राप्त करना है।

श्री प्रैटने मुझे संन्यासी बताया है। उनकी बात सच भी है और झूठ भी। मैं संन्यासी होने का दावा नहीं करता। जैसे आप भूलोंसे भरे मनुष्य हैं वैसा ही मैं भी हूँ। अन्तर केवल इतना है कि मेरी संन्यासी होनेकी आकांक्षा है और मैं उस दिशामें प्रयत्नवान हूँ। सत्याग्रहसे राजनैतिक प्रश्नोंका निर्णय कराया जा सकता है, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है। आपकी लड़ाईसे श्री प्रैटका रुख बदला है, यह आत्मशक्तिका ही प्रभाव है।

लड़ाई में अपनी जमीनोंको गँवा देना कोई बहुत-बड़ी बात तो है नहीं। जमीनें गँवानेके लिए संन्यासी होनेकी नहीं, गृहस्थ होनेकी आवश्यकता है। जो लोग यूरोपमें रक्तकी नदियाँ बहा रहे हैं वे संन्यासी नहीं हैं, गृहस्थ हैं। श्री लॉयड जॉर्जने अपना तन, मन और धन [देशके लिए] अर्पित कर दिया है, क्या वे संन्यासी हैं? इंग्लैंड जो लड़ाई लड़ रहा है वह क्या जमीनके लिए लड़ रहा है? नहीं, कदापि नहीं। उसको ऐसा लगा कि जर्मनीकी क्यों चले। जर्मनी भी अपनी प्रतिष्ठाके लिए लड़ रहा है। वह अपनी बात रखना चाहता है। हमें कुछ दूसरे लोगोंने यह आश्वासन दिया है कि हमें भूखों मरने नहीं दिया जायेगा। यूरोपके लोगोंको तो अपने बाहुबलका ही आश्वासन है। वे अपने बेटोंको पट-पट मरता देखकर भी आँसू नहीं बहाते। आप इस लड़ाई में अपनी जमीनें सम्मान-सहित वापस ले सकेंगे। यदि आप जमीनें गँवाकर त्याग करेंगे तो आपका नाम खेड़ा जिलेमें ही नहीं, समस्त भारतमें होगा।

अन्तमें आपसे इतना ही कहना है कि आपने ईश्वरको साक्षी रखकर ज्ञानपूर्वक और सोच-समझकर जो प्रतिज्ञा ली है, उसे आप चाहे जो हो, अवश्य पालें और मुझ पर नहीं, ईश्वरपर भरोसा करें।

जमीनें चली भी जायेंगी तो भी क्या हुआ? इससे हम अपनी कीर्ति और प्रतिष्ठा तो बढ़ा सकेंगे। सरकार भी हम जैसे वीर लोगोंपर राज्य करने में गौरव अनुभव करेगी।

मैंने एकबार श्री प्रैटसे कहा था कि वे भय और दमनके बलपर राज्य चला रहे हैं। इसके बजाय लोगोंके प्रति प्रेम और आदरसे राज्य चलायें तो जबतक सूर्य और चन्द्र हैं तबतक वह कायम रहेगा। मैंने आपसे बार-बार कहा है और अब भी