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पत्र : कस्तूरबा गांधीको

फैल गया है। आप इस प्रतिज्ञाकी पूर्तिके लिए उसपर हिम्मतसे डटे रहें और सत्य एवं शिष्टतापर कायम रहें। इसके साथ-साथ आप अपने आत्म-सम्मानकी रक्षा भी करें। यह आपका धर्म है। जमीनकी अपेक्षा धर्म अधिक महत्त्वपूर्ण है। जिसने धर्मकी रक्षा की है वह कभी हारेगा नहीं। वह कभी भूखा भी न मरेगा। मैं आपको यह सलाह देता हूँ और यह मेरी पहली और अन्तिम सलाह है कि आप अपनी प्रतिज्ञाको कदापि न तोड़ें। आपसे मेरी यही प्रार्थना है।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह

२४६. पत्र : कमिश्नरको[१]

नडियाद
[ अप्रैल २३, १९१८ से पूर्व ]

[ महोदय, ]

सत्याग्रहमें मेरा अटल विश्वास है। मैं अपने सब अस्त्र — यहाँतक कि अपना सब-कुछ. — त्याग देनेको सहर्ष तैयार हूँ; परन्तु अपने सिद्धान्त नहीं त्याग सकता।

[आपका,
मो० क० गांधी ]

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १

२४७. पत्र : कस्तूरबा गांधीको

[ बम्बई जाते समय गाड़ी में ]
अप्रैल २३, १९१८

प्रिय कस्तूर,

तुम्हें मगनलालको माँका सुख देना है। उसने माँ-बाप छोड़ दिये हैं और अपने मेरे कामको अपना लिया है। मेरे कामका उत्तराधिकार लेनेके लिए अभी तो वही तैयार है। उसे शक्ति कौन दे? उसके दुःखमें तुम रोओ, उसे प्रेमसे खिलाओ-पिलाओ और बहुविध चिन्ताओंसे मुक्त रखो, यह तुम्हारा काम है। भूपतरायके घरमें जो क्लेश है, उसे तुम मिटाओ। मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसे काम करती रहो। इसमें सच्ची विद्वता

  1. गांधीजीने श्री प्रैटसे भेंटके लिए समय माँगते हुए उन्हें एक पत्र लिखा था, जिसके उत्तर में उन्हें मैका यह पत्र मिलाः “यदि आप अपने सभी शस्त्र त्याग दें और मुझसे बातचीत करनेको आयें तो मेरा दरवाजा आपके लिए खुला हुआ है, लेकिन मेरे हाथ कानूनी तथा प्रशासनिक नियमोंसे बँधे हुए हैं।"