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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हेतु क्या है अपना अधिकार सिद्ध करना। दो सेनाएँ लड़ती हैं तो अन्तमें कभी उनमें से एक दूसरीको हर्जाना देती है। जो हर्जाना देती है वह पराजित मानी जाती है। हमारी सरकारसे प्रार्थना है कि वह इस तथ्यको स्वीकार कर ले। पंचकी वाणी परमे- श्वरकी वाणी है। लोकमत सर्वोपरि होता है। यह वाणी परमेश्वरकी है, यह बात हम जब सरकारसे स्वीकार करा लें तब हमारी विजय मानी जायेगी। किन्तु विजय कौन प्राप्त कर सकता है? अधिकारियोंसे डरनेका कोई कारण नहीं है। उनसे किसी तरहका दुराव किये बिना बात करनी चाहिए। जैसे स्त्रियों और पुरुषोंके बीचका झूठा दुराव दूर करने की आवश्यकता है वैसे ही सरकार और लोगोंके बीचका दुराव दूर किया जाना चाहिए।

यह स्थिति पशुबलसे नहीं आ सकती; बल्कि आत्मबल या प्रेमबलसे आ सकती है। जो आत्मबलको पूजता है उसकी जीत होती है। हमारी लड़ाईमें पशुबलके लिए स्थान नहीं है। हमें तो आत्मबलसे जीतना है। सच्चा वीर वही है जो अपना सिर सदा अपनी हथेलीपर लिये रहता है। यह सच्चा क्षत्रियत्व है। और इसीको प्रकट करना हमारी लड़ाईका उद्देश्य है। यदि भारत इस बातको समझ ले कि तलवारकी कतई जरूरत नहीं है, तो अंग्रेज ही नहीं, समस्त संसार हमारे सामने झुकेगा। हमारे सामनेका अर्थ है सत्यके सामने। इसमें कोई गर्वोक्ति नहीं है। जहाँ सत्य होता है वहाँ हार नहीं हो सकती। यह बात विशेषतः ध्यानमें रखी जानी चाहिए कि हम अपनी ओरसे इस संघर्षमें कोई कसर न रखें। इसके लिए हमें अपने आपसी झगड़े खत्म कर देने चाहिए। यह लड़ाई न्यायोचित है, किन्तु यह मुख्यतः श्री प्रैटके कारण छिड़ी है। सरकारसे लोकमतका आदर करवाना इसका मुख्य उद्देश्य है। दिल्ली में वाइसराय दरबार कर रहे हैं। इसमें वे हमारे देशके नेताओंसे कहेंगे कि वे अपने आपसी झगड़े खत्म कर दें। में उनसे उत्तरमें यह कहूँगा कि इस लड़ाईको खेड़ाके लोग नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि कमिश्नर लड़ रहे हैं। हम तो अपनी रक्षा करनेके लिए लड़ रहे हैं। हमने तो अपना बचाव-भर किया है। हमने हमला नहीं किया है। किन्तु यदि इस बीच आप हार मान बैठें तो मेरी क्या स्थिति होगी? इस कारण आपको मजबूत रहना चाहिए और नुकसान हो तो बरदाश्त कर लेना चाहिए। तभी यह सिद्ध हो सकता है कि दोष लोगोंका नहीं है बल्कि कमिश्नरका है।

मैं आपको विश्वासपूर्वक कहता हूँ कि आपकी जमीनोंको सरकार जब्त नहीं कर सकती। सरकारी दफ्तर [ कागजात ] में भले ही उनकी जब्ती की कार्रवाई कर ली जाये; किन्तु जबतक कागजपर हमारे हस्ताक्षर न हों तबतक वे जब्त नहीं होंगी। अबतक तो जिम्मेदारी मेरी और वल्लभभाईकी है; किन्तु जब में दिल्ली चला जाऊँगा तो वह अकेले वल्लभभाईपर आ पड़ेगी। आप भी इसमें हिस्सा बँटायें। यदि आप, जब में यहाँ रहूँ, तभी निर्भय रहें तो यह सत्याग्रह आपका नहीं, मेरा है। सत्याग्रह तो वस्तुतः खेड़ा जिलेका है। न वह मेरा या वल्लभभाईका है; न अनसूयाबहनका है। मैं तो आपको केवल मार्ग ही दिखा सकता हूँ। उस मार्गपर चलना आपका काम है। जीत खेड़ा जिलेके लोगोंपर निर्भर है। यदि आप मजबूत बने रहेंगे और सत्यपर कायम रहेंगे तो आप अवश्य ही जीतेंगे। केवल प्रतिज्ञा लेनेसे ही, आपका यश समस्त देशमें