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२४९. अपील: बम्बईकी जनतासे[१]

अप्रैल २३, १९१८

आजकी सभाके प्रमुख महोदयने आपको बताया कि खेड़ाके लोगोंने सरकारसे न्याय प्राप्त करनेके लिए क्या-क्या कदम उठाये हैं। मैं इसमें कुछ और जोड़ना चाहता हूँ। इस लड़ाईको किसी दूसरेने खड़ा नहीं किया है। इसके लिए खेड़ाके लोगोंको किसीने नहीं उभाड़ा। इसका मूल हेतु राजनैतिक नहीं है, जैसा कुछ लोगोंका आरोप है; इसके पीछे होमरूल या वकील और बैरिस्टर भी नहीं हैं। मैं इस बातकी साक्षी देनेके लिए यहाँ खड़ा हूँ कि इसको हल-जोता किसानोंने ही आरम्भ किया है। गोधराके राजनीतिक सम्मेलनके बाद खेड़ा जिलेमें कुछ किसानोंने अनावृष्टिके कारण सरकारसे राहत देनेकी प्रार्थना करनेका विचार किया। उन्होंने मुझे पत्र लिखा कि उन्हें कानूनके मुताबिक सरकारसे राहत लेनेका हक है; क्या मैं इसमें उनकी सहायता करूँगा। इससे आप देख सकते हैं कि इस संघर्ष का मूल कारण कोई बाहरी आन्दोलन नहीं है। किन्तु यह सच है कि बाहरकी सहायता से यह संघर्ष चमका है। हमारे अध्यक्ष और माननीय गोकुलदास भाईका[२] पूरा समर्थन प्राप्त कर लेनेपर लोगोंको अपनी जीतका विश्वास हो गया। गुजरात-सभाके कुछ प्रतिष्ठित सभासदोंने भी इस श सम्बन्धमें जाँच की और अपनी दिलजमई की कि फसल दरअसल मारी गई है, और इस कारण राहत दी जानी चाहिए। लोगोंको राहत देनेका औचित्य सिद्ध करनेके लिए उनकी गवाही काफी थी फिर भी, अधिकारियोंको विश्वास कराने के प्रयत्नमें कोई कमी नहीं की गई। मैं इसकी सचाईके सम्बन्धमें साक्षी देता हूँ।

जिसे वास्तविक कष्ट नहीं है वह सत्याग्रहकी लड़ाई नहीं लड़ सकता। इस लड़ाई में सैनिकोंकी लड़ाईकी अपेक्षा अधिक वीरताकी आवश्यकता होती है। सैनिकके हाथ में तो हथियार होता है; उसका आग्रह शत्रुपर प्रहार करने में होता है। इसके विपरीत सत्याग्रही स्वयं कष्ट सहकर लड़ता है। कोई कमजोर और आशाहीन आदमी ऐसा नहीं कर सकता। उसमें कष्ट- सहनकी क्षमता नहीं होती। सत्याग्रही ज्यों-ज्यों दुःख आते हैं त्यों-त्यों शुद्ध होता जाता है। जैसे सोना अग्निमें तपकर अधिक शुद्ध होता है वैसे ही सत्याग्रही भी कष्ट सहकर शुद्ध होता है। उसकी भी यही कसौटी है। सत्यका आग्रह ही सत्याग्रहका शस्त्र है। सच्चा सत्याग्रही वही होता है जो मनमें से भय निकालकर सत्यपर आरूढ़ होकर लड़ता है।

 
  1. यह भाषण गांधीजीने बम्बईके नागरिकोंकी एक सार्वजनिक सभामें दिया था जो उनको शान्ताराम चाल कांदेवाडीमें खेड़ा जिलेकी स्थितिसे परिचित कराने और वहाँके सत्याग्रह संघर्ष से सहानुभूति प्रकट करनेके लिए की गई थी। सभाकी अध्यक्षता विठ्ठलभाई ज० पटेलने की। कार्रवाई प्रायः गुजराती और मराठीमें हुई थी जिसका विवरण २४-४-१९१८ के बॉम्बे क्रॉनिकल में छपा था।
  2. माननीय गोकुलदास पारेख।