पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इस लड़ाईमें अकेले पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ भी सम्मिलित होती हैं। गाँवोंकी सभाओंमें एक अनोखा दृश्य दिखाई देता है। स्त्रियाँ कहती हैं: सरकार चाहे हमारी भैंसें ले जाये, चाहे हमारे गहने ले जाये और चाहे हमारी जमीनोंको जब्त कर ले; किन्तु हमारे मर्दोंने जो प्रतिज्ञा ली है उसका पालन किया ही जाना चाहिए। यह लड़ाई महान् है, व्यापक है। इसका यश-सौरभ सर्वत्र फैल रहा है। खेड़ाके लोगों [की वीरता] का वर्णन करना मेरी शक्तिसे परे है। सरकार उनकी सहायतासे अपने वर्तमान संकटका निवारण कर सकती है। पाटीदार क्षत्रिय होनेका दावा करते हैं।

सरकारकी विज्ञप्तिमें खेड़ा जिलेको समृद्ध बताया गया है और एक प्रकारसे यह सत्य है। यहाँ ‘बड़े बर्तनकी खुरचन भी बहुत होती है’ कहावत लागू होती है। मैं जब उनके पुराने मकानात देखता हूँ तो मुझे उनके पुराने गौरवकी याद आती है। उन्होंने अपने धैर्य, निष्ठा और अध्यवसायसे खेड़ा जिलेकी भूमिको सुन्दर बाग बना दिया है। किन्तु उनके घरोंको देखकर मेरी आँखोंमें आँसू आ जाते हैं। वे कहते हैं कि उनके पास पैसा नहीं है; अन्यथा उनके खेत इससे भी अधिक सुहावने होते।

सरकार ऐसे वीर लोगोंको ऐसे दैवी संकटके समयमें भी, जो राहत देनी चाहिए सो देना नहीं चाहती। ऐसे कष्ट खेड़ा जिलेके लोगोंपर अनेक बार आये हैं। उनकी वर्तमान निस्तेजताका यही कारण है। इस सभामें आये हुए भाई और बहन खेड़ा जिलेमें जाकर किसानोंकी कोठी-कुठलोंको देखें और उनके खेतोंकी उपजकी जाँच करें। उन्हें उनके पास कुछ भी न मिलेगा। इस अवस्थामें वे क्या करें? आप इससे कल्पना कर सकते हैं कि उनकी अवस्था कितनी दुःखद है। उन्होंने कहा: “हमारी हालत ऐसी है।” इस सालका लगान अगले साल देनेसे वे एक सालके ब्याजसे बच जायेंगे। किन्तु इस लड़ाईमें प्रश्न ब्याजसे बचनेका नहीं है। उनका ब्याज तो बम्बईका एक व्यापारी ही दे सकता था। किन्तु उससे उनके दुःखोंका अन्त नहीं हो सकता था। इसीसे तो सरकार मान बैठती है कि वे साल ब्याजपर रुपया लेकर लगान दे सकते हैं।

मैं इस लड़ाईसे यह सिद्धान्त स्थिर करना चाहता हूँ कि सरकार लोगोंसे पूछे बिना लगान लेनेका निर्णय नहीं कर सकती। लगानका कानून बुरा है, ऐसा कहकर हम दुःख दूर नहीं कर सकते। दुःखसे मुक्त होनेका एकमात्र उपाय तो यह है कि ज्ञानपूर्वक दुःख सहन करके सदाके लिए दुःखसे पिंड छुड़ा लिया जाये। कमिश्नर श्री प्रैट इस सम्बन्धमें खुल्लम-खुल्ला कहते हैं कि “यदि में इस बार लगान मुलतवी कर दूं तो समस्त देश समझ जायेगा कि ऐसे मामलेमें भी लोग हस्तक्षेप कर सकते हैं।”

कष्ट सहन करना सीखने के लिए यह अवसर अच्छा है। ऐसा अवसर बार-बार नहीं आ सकता। इस समय लोगोंने उचित मर्यादाकी रक्षा की है। खेड़ाके लोगोंने धर्मका स्वरूप बता दिया है। उनका कहना है कि वे स्वयं कष्ट सहकर अपने कष्टोंका अन्त करेंगे।...

मैंने खेड़ा और चम्पारनके अनुभवसे यही सीखा है कि यदि नेता लोगोंमें जायें, उनके साथ रहें और खायें-पियें तो इससे दो वर्षमें ही बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया जा सकता है। आप इस लड़ाईका सूक्ष्म अध्ययन करें, आप खेड़ा जिलेके लोगोंको पहिचानें। उनके प्रति