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२९३. पत्र: एल० रॉबर्ट्सनको

बम्बई
जून ९, १९१८

प्रिय श्री रॉबर्ट्सन,


मुझे खेद है कि जब आपका पत्र[१] पहुँचा उस समय मैं बाहर था। मुझे लगता है कि प्रस्तावपर मैं न बोलूँ। आशा है, परमश्रेष्ठ इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे। देखता हूँ, जनशक्ति समिति (मैन पावर कमेटी) में मेरा नाम भी शामिल है, लेकिन तिलक जैसे व्यक्तियोंके नाम शामिल नहीं हैं। यदि मैं उनके तथा उन-जैसे अन्य समर्थ स्वराज्यवादियों [होमरूलर्स] के सहयोगका लाभ प्राप्त नहीं कर सका तो मुझे लगता है मेरी उपयोगिता बहुत कम हो जायेगी। जबतक सरकार यह विश्वास करनेके लिए तैयार नहीं है कि वे अपने कर्त्तव्यका निर्वाह करेंगे तबतक सच्चा राष्ट्रव्यापी सहयोग प्राप्त करने तथा एक राष्ट्रीय सेना बनाने की आशा करना व्यर्थ है। यदि इन नेताओंको जनशक्ति समितिमें शामिल होनेके लिए आमन्त्रित किया गया तो मुझे उसमें काम करनेमें प्रसन्नता होगी। यदि समितिके विस्तारके बारेमें प्रस्ताव किया जा सकता हो तो में यह प्रस्ताव पेश करनेको तैयार हूँ कि इनमें से कुछ सज्जनोंको इन समितियों में से एक या अधिकमें शामिल किया जाये।

हृदयसे आपका,

[अंग्रेजीसे]

इंडिया ऑफिस ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स: ३४१२/१८; तथा बॉम्बे गवर्नमेंट होम डिपार्टमेंट स्पेशल फाइल, सं० १७८८; सन् १९१८

 
  1. यह पत्र ९ जूनको लिखा गया था। उसका पाठ इस प्रकार है “आज ही आपका पत्र मिला। मैं स्मृतिपत्र (भरतीसे सम्बन्धित उस टिप्पणीको छोड़कर जो प्रेसमें है) के साथ कार्यसूची नत्यी कर रहा हूँ। स्मृतिपत्र में योजनाके बारेमें विस्तार से बताया गया है। आप देखेंगे, परमश्रेष्ठने यह मान लिया है कि आप बोलना स्वीकार करेंगे ही। अगर आप वैसा न करना चाहें तो कृपया आप किसी सन्देशवाहक द्वारा इस आशयकी सूचना भेज दें ताकि कार्यसूची में आपका नाम न रखा जाय।”