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पत्र: एस्थर फैरिंगको

मनमें स्थिर रहेगा तो खेड़ाके समस्त गाँवोंमें अथवा किसी अन्य स्थानमें सत्याग्रहकी झाँकी मिलती ही रहेगी। खेड़ा जिलेके जैसे शुभ परिणाम मिलते रहें, यही मेरी कामना है।

आपने मानपत्रमें मुझे गुरु-दक्षिणा देनेकी बात कही है। गुरुपद मैं नहीं लेता। यदि आप मुझे अपनी सेवाएँ अर्पित करनेके लिए तैयार हों, तो निश्चय ही मुझे उनकी आवश्यकता है। इसका मूल्य बहुत भारी है।

खेड़ाके लोगोंने मुझपर प्रेमकी जो वर्षा की है और स्वयंसेवकोंने मेरी जो सेवा की है, उसके लिए भगवान् से प्रार्थना है कि वह मुझे सद्बुद्धि और सेवा-धर्मका पालन करनेकी विशेष शक्ति दे। इसी ढंगसे मैं अपना असीम प्रेम प्रदर्शित कर सकूँगा। मैंने आपको कटु-वचन कहे हों तो उनके लिए आप मुझे क्षमा करें। मैंने आपसे कोई बात द्वेषभावसे नहीं बल्कि देशहितके ध्यानसे कही है।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

३१९. पत्र: एस्थर फैरिंगको[१]

नडियाद
जून ३०, १९१८

प्रिय एस्थर,

तुम्हें पत्र लिखनेका समय इससे पहले नहीं मिल सका। पता नहीं आजकल मैं जो-कुछ लिखता और बोलता हूँ, उस सबको तुमने पढ़ा है या नहीं। जो आदमी जीव-हत्या करना चाहता है परन्तु अपंग होने के कारण वैसा कर नहीं सकता, उसे मैं क्या सलाह दे सकता हूँ? जीव-हत्या न करनेका माहात्म्य वह समझ सके, इससे पहले वह जो अपना हाथ गँवा बैठा है, मुझे उसे पहले वही वापस दे देना चाहिए। जवान हिन्दुस्तानियोंको सेनामें भरती होनेकी सलाह मैं सदा देता रहा हूँ। परन्तु अबतक उसका सक्रिय प्रचार करनेसे मैंने अपने-आपको रोक रखा था। इसका कारण इतना ही था कि देशके राजनीतिक जीवनमें और खुद युद्धमें मुझे बहुत दिलचस्पी नहीं हुई थी। परन्तु दिल्लीमें मेरे सामने एक कठिन समस्या आ खड़ी हुई। मुझे एकदम सूझ पड़ा कि सेनामें भरती होनेके प्रश्नपर गम्भीरतासे विचार न करूँ, तो इसका अर्थ होगा कि मैं जीवनके सबसे बड़े सवालके साथ खिलवाड़ कर रहा हूँ। हमें या तो इस राज्यसे

  1. यह पत्र एस्थर फैरिंगके निम्न पत्रके उत्तरमें लिखा गया था: “मैंने वाइसरायके नाम आपका पत्र पढ़ा है। मैं समझ नहीं सकी कि सत्याग्रहीके नाते आपकी भावनाओंके साथ यह कहाँतक मेल खाता है; या अगर दूसरे ढंगसे कहूँ, तो जो व्यक्ति दृढ़तापूर्वक सत्याग्रहमें विश्वास करता है और जिसने सदैव और सब जगह सत्याग्रहके पालन में अपना जीवन लगा दिया है, वह दूसरोंसे युद्ध में शामिल होकर लड़नेके लिए किस प्रकार कह सकता है?”