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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वीकार करना चाहिए, जब मैंने वल्लभभाईको पहली बार देखा तब मेरे मनमें खयाल आया था कि यह कोई अक्खड़ आदमी है, यह कौन हो सकता है? लेकिन जब मैं उनके निकट सम्पर्क में आया तब ऐसा लगा कि मुझे वल्लभभाईकी अनिवार्य आवश्यकता है। वल्लभभाईने देखा अभी वकालत चलती है, नगरपालिकामें भी महत्त्वपूर्ण कार्य करता हूँ; लेकिन उससे भी महत्त्वपूर्ण कार्य यह है। मेरा धन्धा आज है, हो सकता है वह कल न रहे; मेरा पैसा कल उड़ जायेगा, मेरे उत्तराधिकारी उसे उड़ा दें, इससे तो अच्छा यही है कि मैं उन्हें कोई अच्छी सम्पदा जाऊँ। इन विचारोंसे प्रेरित होकर वे संघर्ष में कूद पड़े। वल्लभभाई मुझे न मिले होते तो जितना काम हुआ है, उतना न होता; उनका मुझे इतना सुन्दर अनुभव हुआ है।

मुझे लगता है कि वल्लभभाईको सम्मान देनेसे अन्य भाइयोंको भी सम्मान मिल जाता है, इसलिए मैं उनका नाम नहीं लेता। अध्यक्ष महोदयने तो वस्तुतः जिस प्रकार बादशाह सम्मान और पुरस्कार दिये जानेवाले व्यक्तियोंकी सूची प्रकाशित करते हैं वैसी सूची प्रकाशित की थी। मैं तो इसमें निमित्त मात्र हूँ। कुछ-एक नाम इस ‘शाही सूची’ में नहीं आये हैं, और सबके नाम इसमें आ भी नहीं सकते थे। मैं उनके नाम यहाँ दूँगा। जो लोग सेवाधर्मको अंगीकार कर लेते हैं, उन्हें इतनी शान्ति और इतनी प्रसन्नता मिलती है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। मैंने संसारके सुखका पूरा-पूरा अनुभव किया और मुझे लगा है कि सच्चा आत्मानन्द तो सेवा-धर्ममें ही निहित है। यहाँ सेवाधर्मके सच्चे उदाहरण के तौरपर मैं अनाथाश्रमके भंगी भाइयोंका उल्लेख करता हूँ। इन्होंने मेरे प्रति जो प्रेमभाव दरसाया है वह अवर्णनीय है। इसी तरह अनाथाश्रमके बालक भी मेरी सेवा करनेमें एक-दूसरेसे होड़ करते थे। उन लोगोंके साथ थोड़ा-सा हँसने के अलावा मैंने कभी बातचीत नहीं की। मैं इन्हें क्या दूँ? मेरे पास तो एक पैसा भी नहीं है। मैं उन्हें अपने बच्चोंके समान मानता हूँ। मुझे जैसी निःस्वार्थ सेवा इन बालकोंसे मिलती है, वैसी वकीलों और बैरिस्टरोंसे भी नहीं मिल सकती।

हमने बहुत अनुभव प्राप्त किये हैं। सत्याग्रहीके सिरपर अनेक बार जो कष्ट आते हैं वे खेड़ाके हिस्से में नहीं आये। मेरे मनमें यह बात थी कि कदाचित् लड़ाई अधूरी रह जायगी, लेकिन इसकी कमी इन जेल जानेवाले भाइयोंने पूरी कर दी। किन्तु वह कमी इस थोड़े दिनकी जेलसे बिलकुल पूरी नहीं हुई। सत्याग्रहकी लड़ाई में ऐसे रस-पान करनेके अवसर मिलते हैं कि जिन्होंने इस रसका आस्वादन किया है वे अन्य कोई वस्तु नहीं चाहते। इस रसका आस्वादन खेड़ाके लोगोंने किया है उसका कारण उनकी शक्ति, उनका बल और उनकी कार्यदक्षता है। इन गुणोंके कारण ही खेड़ाके लोगोंको महत्त्वपूर्ण फलकी उपलब्धि हुई है। हमने लगानके प्रश्नको लेकर जो विजय प्राप्त की है वह तो बहुत मामूली है, लेकिन जैसा कि मैंने बार-बार कहा है, वैसी निर्भयता और बराबरीका ऐसा भाव कि बड़े-बड़े राज्याधिकारियोंसे हम तनिक भी कम नहीं हैं―ये दोनों ही इसके महान् फल हैं। इस संघर्षके फलस्वरूप आपको यह ध्यान हमेशा बना रहेगा कि हम हर परिस्थितिमें सत्याग्रहका प्रयोग कर सकते हैं। यह अग्नि एकबार प्रज्वलित होनेपर बुझती नहीं, निरन्तर जलती ही रहती है। हम चाहते हैं कि सत्याग्रहका यह फल स्थायी रहे। यह परिणाम हमारे