३२०. पत्र: जमनालाल बजाजको
नडीयाद
जेष्ठ कृ० ६ [जून ३०, १९१८]
आपका पत्र मीला। रेलवे-खर्चके लीये जो रकम जमा कीई है वह रकम बांध कामके खर्च[१] में दे सकते हो तो मेरी तकलीफ दूर होती है। दूसरे मित्रोंको भी मैंने लीखा है। भाई शंकरलाल बैंकरने रु० ४००० भेज दीया है। भाई अंबालालजी रु० ५००० भेज रहे हैं। इससे जो खर्च हो गया है उसमें मदद मीलती है। दूसरे दो मित्रसे भी आशा रखता हुं। यदि आप यह २५,००० रु० इस बांध काममें दे दे तो मैं बहोत कर निश्चित हो सकता हुं। रेल-खर्चकी आवश्यकता नहि है। यह खर्च साधारण आमदनीमें से चलता है।
मेरे लीखनेसे देना ही चाहिये ऐसा नहीं समझना। यदि आप बे संकोच बांध काममें दे सकते हो तभी देना।
मोहनदास गांधीका बन्देमातरम्
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल हिन्दी पत्र (जी० एन० २८३९) की फोटो-नकलसे।
३२१. पत्र: जी० के० देवधरको
[नडियाद]
जुलाई २, १९१८
सेवा-सदनके कामकी रिपोर्ट मुझे भेजी, इसके लिए आभारी हूँ। यह तुम्हारे उद्योगका, तुम्हारी रचनात्मक देश-भक्तिका और तुम्हारे सेवा-प्रेमका कीर्तिस्तम्भ है। उसकी प्रगति सचमुच असाधारण है। शायद सारे हिन्दुस्तानमें उसके जैसी दूसरी संस्था नहीं होगी। तुम अपने यहाँसे अध्यापिकाएँ भेजनेकी स्थितिमें हो, तो मुझे एक बल्कि दो की आवश्यकता है जो चम्पारनमें अवन्तिकाबाई और आनन्दीबाईका स्थान ले सकें।
अब रही बात मेरे सुझावोंकी। अंग्रेजीका थोड़ा-सा ज्ञान होना तो न होनेसे भी खराब है। हमारी स्त्रियोंपर यह अनावश्यक भार है। जहाँ अंग्रेजीसे काम लेनेकी जरूरत न हो, वहाँ उसे काममें लेना बन्द कर दें, तो निश्चित मानो कि अंग्रेज हमारे
- ↑ उन दिनों साबरमती श्रमको इमारत बनवाई जा रही थी।