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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साथ हमारी भाषामें बात करने लगेंगे। उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। [दिल्लीके युद्ध] सम्मेलनमें मैं उर्दूमें बोला, इससे लॉर्ड चैम्सफोर्ड बड़े खुश हुए थे। थोड़ी-सी चुनी हुई बहनोंको आप जितनी भी अंग्रेजी पढ़ा सको, जरूर पढ़ाओ, ताकि वे दूसरी बहनोंके लिए अंग्रेजीके सर्वोत्तम विचारोंका अनुवाद करें। इसीको मैं भाषाई किफायत कहता हूँ। इसीलिए मैं तो अंग्रेजीके स्थानपर हिन्दीको ही रखूंगा। इससे महाराष्ट्रीय बहनोंके विचार अधिक उदार बनेंगे और राष्ट्रीय कार्यकर्ताकी हैसियतसे उनकी उपयोगिता भी बढ़ेगी। अभी तो वे अपनी और बहनोंकी तरह विचार-संकीर्णतासे ग्रस्त हैं।

हारमोनियम और कंसर्टीना [तंबूरपेटी या स्वरपेटी] में तो बहुत थोड़ा ही फर्क है। मैं तो बहनोंको वीणा और सितार देना पसन्द करूँगा। ये बाजे सस्ते हैं, राष्ट्रीय हैं और हारमोनियमसे बहुत ऊँचे दरजेके हैं। अन्तमें, फैंसी कामकी अपेक्षा हरएक बहनको हाथ-कताई और हाथ-बुनाई सिखाना मुझे ज्यादा पसन्द होगा। आजकल दो कार्यकर्ताओं द्वारा मैं सौ रेंटिये (चरखे) चलवा रहा हूँ। उनसे लगभग तीन सौ बहनोंको रोजी मिल जाती है। जब हिन्दुस्तान अपनी सहज स्वस्थ और शान्त गरिमा पुनः प्राप्त कर लेगा तब ये मिलें भूतकालकी वस्तु बन जायेंगी। उस समय प्राचीन कालकी भाँति हमारे देशकी रानियाँ फिरसे खूब बारीक और बढ़िया सूत काता करेंगी। मैं चाहता हूँ कि वह दिन जल्दी लानेमें तुम मदद दो। विश्वास करो कि थोड़े ही समय में हमारे यहाँ इन चीजोंकी इफरात हो जायेगी।

साधारण प्रवृत्ति समयके साथ चलनेकी होती है। परन्तु हमें तो हमेशा अपने सामनेकी वस्तुओंकी जाँच-पड़ताल और उनमें चुनाव करते रहना है। हमें सदा समयके बहावमें नहीं बह जाना है। हमें तो भविष्यकी आगाही करनी चाहिए। मनुष्य विचारशील हो तो दौड़ते-दौड़ते भी देख सकता है कि आगेका जमाना हस्त-शिल्प कौशलका जमाना है। फिर तुम बहनोंको कातने-बुननेका प्रोत्साहन दोगे तो इससे कुछ खोओगे नहीं। नंगोंको ढकनेमें वे सहायक बनेंगी।

तुमने जितना चाहा था, मैंने उससे बहुत ज्यादा दे दिया है। अमृतलाल और केसरीप्रसादको देनेके लिए मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ। श्रीमती देवधरसे कहना कि मुझे आशा है, वे थोड़े दिन आश्रम में आकर रहेंगी।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई