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३३७. पत्र: दत्तात्रेय दाभोलकरको

[नडियाद
जुलाई ९, १९१८]

चि० दत्तात्रेय,

तुम्हें पांचवीं श्रेणीकी परीक्षामें प्रथम आनेपर बधाई देता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम जैसे पढ़ाईमें प्रथम आये हो, वैसे ही चरित्रमें प्रथम रहो।

तुमने पहले मासकी छात्रवृत्ति आश्रमको दे दी, इससे मुझे खुशी हुई। तुम्हारे दानका तत्त्व जब मैं आश्रममें आऊँगा, तब समझाऊँगा। तुम्हारे पिता तुममें अभीसे इस प्रकारकी परोपकारकी भावना उत्पन्न करते रहते हैं, यह तुम्हारे लिए ऊँचे दर्जेकी विरासत है। तुम इसका विकास करना।

मोहनदास गांधी के आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३३८. पत्र: देवदास गांधीको

[नडियाद]
जुलाई ९, १९१८

चि० देवदास,

तुम्हारा पत्र न मिलनेसे जो चिन्ता रहती थी; वह आज नटेसनके तारसे दूर हो गई। बीमारीका उचित कारण ढूँढ़कर कुछ ऐसा करो, जिससे फिर बीमार न पड़ो। बीमारी में हिन्दी सीखनेवाले छात्रोंने क्या किया? उनमें से कोई तुम्हारे पास आता था? किसीने पढ़ाई जारी रखी थी या नहीं?

मुझे अभीतक एक भी रंगरूट नहीं मिला। देशकी स्थिति ऐसी भयंकर है।

तुमने जो तार वहाँ देखा था, वह ठीक नहीं था। कोई मेरा हमनाम सरकारी अफसर है, इसीसे यह भूल हुई है। अभी तककी मेरी असफलता यह बताती है कि लोग मेरी सलाह माननेके लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन जहाँ मैं उनकी रुचिके काममें हाथ डालूँ वहाँ वे मेरी सेवा स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं। यही ठीक है। इस सेवासे सलाह देनेका अधिकार मिलता है। तीन बरसकी सेवा और वह भी अलग-अलग प्रदेशों में―यह तो कुछ भी नहीं है। फिर भी भरतीके बारेमें में और कुछ कर ही नहीं सकता था। मुझे यह मानसिक शान्ति है कि ऐसे समय मैंने पहल की। मुझे इसकी