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३३५. पत्र: एस्थर फैरिंगको

नडियाद
जुलाई ९, १९१८

प्रिय एस्थर,

तुमने मुझसे जो प्रश्न किया, सो बिलकुल ठीक किया। [लेकिन] मैंने जो बात तुम्हें समझाई है, तुम उसका क्या उत्तर देती हो मैं उसकी राह देख रहा हूँ।

तुम्हें ग्रामीण जीवन और गाँवके बच्चोंके बीच रहना ज्यादा पसन्द है, तुम्हारी यह बात मुझे अच्छी लगती है। गाँवोंके बच्चे अधिक भोले होते हैं, इसलिए वे अधिक प्यारे होते हैं।

हाँ, अपने करारके अन्ततक काम करना तुम्हारा कर्त्तव्य है। मैं जानता हूँ कि लड़कियोंको[१] तुम्हारे संपर्कमात्रसे लाभ होगा। यदि उन्हें दोषपूर्ण शिक्षा दी भी जा रही हो तो भी मुझे उसकी परवाह नहीं।

देवदास अभी-अभी बीमारीसे उठा है। मुझे मालूम है कि उसे तुमसे मिलकर प्रसन्नता होगी। अगर वह अभीतक तुम्हारे पास न आया हो तो तुम उससे स्वयं मिलना। मेरी इच्छा है कि तुम्हारे पास समय हो तो तुम उससे जितना मिल-जुल सको उतना मिलो-जुलो।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
 

३३६. मु० अ० जिन्नाको लिखे पत्रका अंश

[नडियाद]
जुलाई ९, १९१८

...हम रंगरूटोंको भरती करते रहें और उसके साथ-ही-साथ इस सुधार योजनामें परिवर्तन कराने का आग्रह करें, तो कितनी शानदार बात रहेगी।...

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई।
 
  1. डॅनिश मिशन बोर्डिंग स्कूल, तिरुकोइलरकी छात्राएँ।