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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इमारतें अब बन गई हैं। बुनाई-घर भी बन चुका है। उसमें रहा भी जा सकता है। पुस्तकालय आदि बनाना अभी बाकी है।

भाई सोराबजीका स्वर्गवास बहुत खटकता है। उनके जाने से पूरा पहाड़ा ही फिरसे पढ़ना पड़ेगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ११५) से।
सौजन्य: सुशीलाबेन गांधी
 

३७८. पत्र: मोहनलाल खंडेरियाको

नडियाद
आषाढ़ बदी ८ [जुलाई ३१, १९१८][१]

भाईश्री मोहनलाल,

आपका खेड़ा जिलेके सम्बन्धमें लिखा गया पत्र मिला। पैसा अभी नहीं मिला है। खेड़ा जिलेमें लड़ाईके सम्बन्धमें कुछ काम करना है; इस रुपयेका उपयोग उसीमें करूँगा।

मेरी इच्छा है कि आप ऐसा भी कुछ करें जिससे भाई सोराबजीकी स्मृति बनी रहे। उनके जैसा कार्यकर्त्ता मिलना मुश्किल है। मुझे लगता है कि उनके नामपर एक छात्रवृत्ति स्थापित करके किसी व्यक्तिको इंग्लैंड भेजा जाये यह सबसे अच्छा काम है।

मुझे भाई उमियाशंकरने बताया है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। यह जानकर मुझे प्रसन्नता हुई।

मोहनदासके वंदेमातरम्

मूल गुजराती पत्र (जी० एन० ६२१०) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इस पत्र में लड़ाईके प्रयत्नोंकी जो चर्चा की गई है उससे पता चलता है कि यह पत्र १९१८ में लिखा गया था।