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पत्र: मणिलाल गांधीको

इस बातपर धीरजसे विचार करोगे तो तुम मेरे ऊपर अपना रोष मिटा सकोगे। देखो, हरिलालके और मेरे बीच खाई पड़ गई है। हरिलालका जीवन मुझसे अलग हो गया है। पिता और पुत्रके बीचमें पिता-पुत्रका सम्बन्ध तभी माना जा सकता है, जब दोनोंका जीवन एक हो और दोनों एक-दूसरेके लिए आधारभूत हों। मैं हरिलालके जीवनमें और हरिलाल मेरे जीवनमें दिलचस्पी नहीं ले सकता। इसमें हरिलालका दोष नहीं है। उसकी बुद्धि उसके कर्मोका अनुसरण कर रही है। मुझे हरिलालपर रोष नहीं है। परन्तु दोनोंको जोड़नेवाली कड़ी टूट गई, पिता और पुत्रके जीवनका माधुर्य जाता रहा। संसारमें ऐसा अक्सर होता है। मेरे बारेमें असाधारण बात सिर्फ इतनी ही है कि मैं धर्मकी खोज करते हुए हरिलालको अपने साथ नहीं खींच सका और हरिलाल अलग रह गया । हरिलालने अपने मालिकके लगभग तीस हजार रुपये केवल अपनी मूर्खताके कारण बरबाद कर दिये हैं। मालिकको उसने ऐसा पत्र लिखा है जो उसे ही लजानेवाला है और बेरोजगार हो गया है। वह मेरा लड़का है, इसीलिए जेल जानेसे बच गया है। तुम मेरे जीवनमें साथ रहे हो, परन्तु असन्तुष्ट हो। उसमें से निकलना तुम्हें अनुकूल नहीं है और उसमें रहना भी बिलकुल पसन्द नहीं है। इसलिए तुम शान्त नहीं रह सकते। किसी भी तरह तुम सन्तोष रखो, तो शान्त भी हो सको। मैंने जान-बूझकर तुम्हारा अहित नहीं किया है। मैंने जो-कुछ किया है, वह तुम्हारा भला समझकर ही किया है। क्या तुम्हारे लिए मेरे ऊपर अपना रोष मिटानेके लिए इतना काफी नहीं है? मेरे लिखनेसे तुम अधिक रोष तो हरगिज नहीं करोगे। तुमने अपने विचार मुझे बता दिये, इससे में प्रसन्न ही हुआ हूँ। अब सारी व्यवस्था[१] तो तुम्हारे हाथमें आ ही गई होगी।

लड़ाईमें भरती होनेके सम्बन्धमें मेरी दूसरी पुस्तिका देख लेना। आश्रमसे पाँच व्यक्तियोंको चुना है, दूसरे भी उत्सुक हैं लेकिन वे अभी नहीं लिये जा सकते। चुने हुए व्यक्तियोंमें रामनन्दन, सुरेन्द्र, ठाकोरलाल, नानुभाई और रावजीभाई हैं। मैं तो हूँ ही। थोड़े दिनोंमें यहाँ भरती-केन्द्र खुलेगा, ऐसा मेरा खयाल है। देवदास मद्रासमें हिन्दीका काम न कर रहा होता तो [वह भी] आता। उसका बहुत मन है। हरिलालको भी सूचित किया था, लेकिन वह क्यों आने लगा? तुम वहाँ महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हो इसलिए तुम्हें नहीं लिखा जा सकता। बाकी रहा रामदास; उसकी इच्छा हो तो वह आ सकता है। रामदासको नौकरी बदलनी पड़ रही है। यह अच्छा नहीं लगता। तुम खोजबीन करना।

निर्मला इस समय आश्रम है। अपनी खुशीसे आई है। कब तक रहेगी, यह नहीं कहा जा सकता। वह ज्यादातर गोकी बहनकी सेवा करेगी।

आदरणीय खुशालभाई आश्रममें रहने के लिए आए हैं। छगनलाल और वे अलग रहते हैं। छगनलाल राष्ट्रीय शालामें लगा हुआ है।

  1. शायद फीनिक्स की।