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परिशिष्ट

 

परिशिष्ट १

कांग्रेस और मुस्लिम लीगका संयुक्त अभिनन्दनपत्र

[दिल्ली
नवम्बर २६, १९१७]

महानुभाव,

हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी अखिल भारतीय कमेटी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीगकी परिषद् के सदस्यगण, आपका स्वागत करते हैं। श्रीमान् महामहिमके भारतीय मामलोंके प्रमुख मन्त्री हैं। हम आप तथा महामहिम सम्राट् के सम्मान्य प्रतिनिधि तथा इस देशमें उनकी सरकारके प्रधान, महाविभव वाइसराय और गवर्नर जनरल महोदयके सामने कृतज्ञ और आशान्वित होकर उपस्थित हो रहे हैं; कृतज्ञ इसलिए कि राष्ट्रीय कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग द्वारा तैयार की गई सुधार-योजनाके ऊपर आपने और ग्रेट ब्रिटेनमें महामहिम सम्राट्के मन्त्रियोंने, जिनका श्रीमान् प्रतिनिधित्व कर रहे है, ध्यान दिया है; और आशान्वित इसलिए कि हमारे प्रस्ताव न्यायसंगत तथा ब्रिटिश इतिहास और नीतिके सर्वथा अनुकूल हैं, और इसलिए आप उन्हें स्वीकार करनेकी कृपा करेंगे।

महानुभाव, ग्रेट ब्रिटेनने भारतमें जो महान् और अच्छा कार्य किया है हम इस ऐतिहासिक अवसरपर उसके प्रति आभार प्रकट किये बिना नहीं रह सकते। इस देशकी बाह्य आक्रमणसे सुरक्षा और आन्तरिक शान्ति-व्यवस्थाकी स्थापना अपने आपमें कोई साधारण उपलब्धियाँ नहीं हैं। लेकिन ग्रेट ब्रिटेनको इससे कहीं महत्तर श्रेय इस बातका है कि उसने एक अत्यन्त प्राचीन सभ्यताके वारिस, भारतके निवासियोंमें जो दुर्भाग्यवश अपनी उच्च प्रतिष्ठा खो चुके थे फिरसे एक नई बौद्धिक जाग्रति, राष्ट्रीय चेतना और स्वातन्त्र्यकी उत्कट लालसा उत्पन्न कर दी है। पुण्य स्मरण लॉर्ड रिपनने प्रसन्न वाणीमें शिक्षित भारतीयोंको ब्रिटिश शासनकी सन्तान बताया था। तब उन्होंने यह बहुत ठीक ही कहा था। और महानुभावो, हम आपको विश्वास दिला सकते हैं कि सर बार्टल फेयरका यह कथन आज भी उतना ही सही है कि ब्रिटिश शासनके लाभोंको, वे भारतीय जिनका दृष्टिकोण उच्च अंग्रेजी शिक्षाने व्यापक बना दिया है, जितनी अच्छी तरह समझते हैं उतनी अच्छी तरह भारतका अन्य कोई वर्ग नहीं समझता; उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेजी शिक्षा भारत में ब्रिटिश शासनका सबसे स्थायी स्मारक होगी। भारतीयोंकी राजनीतिक आकांक्षाएँ अपने-आपमें ब्रिटेन द्वारा पूर्वमें किये गये मंगल कार्योंकी सराहनाके समान हैं। लॉर्ड मैकॉलेने “इंग्लैंडके इतिहासके जिस सबसे शानदार दिवस” की कल्पना की थी, वह आ