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परिशिष्ट

गया है और भारतवासी वही स्वशासन माँग रहे हैं जिसे अंग्रेज जाति सदासे आत्माभिमानपूर्ण राष्ट्रीय जीवनकी एक अपरिहार्य शर्त मानती आई है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसे एक प्रसिद्ध भारतीय नेताने “ब्रिटिश शासनकी सबसे बड़ी सफलता और ब्रिटिश राष्ट्रकी गरिमाका सिरमौर” बताया था, उसी पवित्र राष्ट्रीय आकांक्षाकी सर्वोच्च अभिव्यक्ति है; और कांग्रेसका आदर्श ही भारतीय मुसलमानोंकी सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था, अखिल भारतीय मुस्लिम लीगका भी आदर्श है। गत २० अगस्तको इंग्लैंड और भारतमें एक साथ की जानेवाली इस सरकारी घोषणाका, कि सम्राट्की सरकार भारत सरकारकी पूर्ण सहमतिसे साम्राज्यके अभिन्न अंगके रूपमें भारतमें उत्तरदायी शासनकी स्थापनाके लक्ष्यको ब्रिटिश नीतिके रूपमें स्वीकार करती है, इस देशमें बहुत सन्तोषजनक प्रभाव पड़ा। उस ऐतिहासिक घोषणाके लिए भारतमें हम सभी धर्म, वर्ग और समुदायके लोग सम्राट्की सरकार और भारत सरकारके बहुत कृतज्ञ हैं।

तथापि, हमारा निवेदन है कि इस आदर्शकी पूर्तिके लिए सुधारोंकी जो पहली किस्त लागू की जानेवाली है उनके अधीन जनताको और इस प्रकार विधान-मण्डलोंमें जनताके निर्वाचित प्रतिनिधियोंको काफी ठोस अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए और भावी प्रगतिके निर्णयका अधिकार केवल भारत सरकार और इंग्लैंडके ही ऊपर नहीं छोड़ना चाहिए, जैसा कि इस समय तय किया गया है। यह बात स्वीकार की जानी चाहिए कि भारतकी जनताको जिसपर इस निर्णयका सीधा असर पड़ता है, ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर अपनी राय देनेका अधिकार है। यह नीति इंग्लैंडके प्रधान मंत्री द्वारा हालमें ही की गई इस घोषणाके सिद्धान्तके अनुकूल होगी, कि “नव-व्यवस्था करते समय किसी देशके निवासियोंकी इच्छा ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए” और यह नीति "“र्म देशोंके ऊपर भी समान रूपसे लागू की जायेगी।” हमारा दृढ़ विश्वास है कि इस देशके और साम्राज्यके हित में यह बात अत्यन्त आवश्यक है कि व्यवहारतः जितनी जल्दी सम्भव हो उतनी जल्दी यहाँ पूर्ण उत्तरदायी शासनकी स्थापना हो। अतः हम यह आश्वासन पानेके लिए इच्छुक हैं कि इस लक्ष्यकी ओर प्रगतिकी रफ्तार समुचित रूपसे तेज होगी। हमें आशा है कि सम्राट्की सरकार इस मुद्देपर विचार करेगी।

पहली किस्त में काफी ठोस ढंगके सुधार यथाशीघ्र लागू करनेके निश्चयके लिए भी हम बहुत कृतज्ञ हैं। महानुभाव, हम यह निवेदन करनेकी छूट लेना चाहते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगके वार्षिक अधिवेशनोंकी कार्रवाई इस बातका ज्वलन्त प्रमाण है कि संवैधानिक, वित्तीय और प्रशासनिक सभी क्षेत्रोंमें व्यापक सुधारों की जबरदस्त आवश्यकता है। जन-साधारणकी आर्थिक स्थिति सुधारना और प्रबुद्ध वर्गकी राजनीतिक आकांक्षाओंकी पूर्ति करना ही इन दोनों संगठनोंका मूल ध्येय रहा है। इन्होंने भूमि-कर सम्बन्धी नीति और प्रशासनमें सुधारकी बराबर माँग की है। इन दोनों संगठनोंकी बराबर माँग रही है कि खेतिहरोंको कर्जसे राहत देनेके लिए कदम उठाये जायें; सिचाई सम्बन्धी निर्माण-कार्योंमें तेजी लाई जाये; औद्योगिक विकास और तकनीकी शिक्षाके बारेमें सक्रिय नीति अपनाई जाये; सभी क्षेत्रोंमें शिक्षाका व्यापक प्रसार किया जाये; सरकारी खर्चमें कटौती और करोंमें कमी की जाये जिनका सबसे ज्यादा दबाव उनपर पड़ता है जो उसका भार उठानेमें सबसे कम समर्थ हैं; पुलिस और