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परिशिष्ट

बरतने दिये जायें तो भारतको उनके मामलेमें वे ही अधिकार होने चाहिए। यदि कभी भविष्य में कोई साम्राज्यीय परिषद् या संसद स्थापित की जाये तो उसमें भारतको अन्य डोमिनियनोंके समान ही और बराबरका प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जबतक ऐसा नहीं किया जाता, तबतक हमारे देशके शासनमें अन्य डोमिनियनोंका भाग लेना, सो भी तब जबकि भारतको उनके यहाँके शासनमें भाग लेनेका वैसा कोई अधिकार नहीं है, हमारे मौजूदा असन्तोषजनक दर्जेको और भी नीचे गिराने के समान होगा जिससे इस देशमें बहुत जबरदस्त विरोध उत्पन्न होगा। हमें आशा और विश्वास है कि सम्राट्की सरकार ऐसे किसी प्रस्तावको स्वीकार नहीं करेगी। और फिलहाल हमारी प्रार्थना है कि भारतको साम्राज्यीय सम्मेलनमें (और यदि कोई साम्राज्यीय मन्त्रि-मण्डल स्थापित किया जाये तो उसमें भी) हमारे विधान-मण्डलोंके निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गये अपने प्रतिनिधि भेजनेकी अनुमति दी जाये। इस वर्षके आरम्भमें इंग्लैंड में होनेवाली साम्राज्यीय युद्ध-परिषद् और साम्राज्यीय युद्ध मन्त्रि-मण्डलकी बैठकों में भाग लेनेके लिए भारतकी ओरसे तीन व्यक्तियोंको भेजकर भारतको जो सम्मान प्रदान किया गया था उसके लिए हम सम्राट्की सरकार और भारत सरकारके अत्यन्त कृतज्ञ हैं। उक्त युद्ध परिषद् द्वारा सर्व-सम्मतिसे स्वीकार किये गये उस प्रस्तावकी भी हम बहुत कद्र करते हैं जिसमें साम्राज्यीय परिषद्की भावी साधारण बैठकोंमें भारतको नियमित रूपसे अपना प्रतिनिधि भेजनेका सुझाव दिया गया था। एक ओर सम्राट्की सरकारके साथ और दूसरी ओर भारतकी जनताके साथ अपने सम्बन्धों में भारत सरकारकी जो मौजूदा संवैधानिक स्थिति है उसमें भारत सरकार द्वारा नामजद किये गये व्यक्तिका दर्जा जनताके प्रतिनिधि अथवा जनताके प्रवक्ताका नहीं हो सकता, जैसा कि उत्तरदायी शासन प्राप्त डोमिनियनोंके मंत्रियोंका होता है। इस मामले में हम खेदपूर्वक यह निवेदन करनेको विवश हैं कि मौजूदा प्रणालीसे लेकर उत्तरदायी सरकारकी स्थापना तकके संक्रमण कालमें इस बातकी अनुमति दी जाये कि साम्राज्यीय परिषद् और साम्राज्यीय मन्त्रि-मण्डलमें भारतके विधानमण्डलोंके निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गये व्यक्तियोंको ही इस देशका प्रतिनिधि बनाकर भेजा जाये।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २८-११-१९१७