पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। उसमें एक महत्त्वपूर्ण और सजातीय विषय, स्वायत्त शासन, तथा प्रशासनमें कुछ तात्कालिक सुधारोंके बारेमें भी चर्चा की गई है। इन दोनोंके लिए कांग्रेस और लीग बहुत समयसे सरकारसे प्रार्थना करते रहे हैं। कांग्रेस और मुस्लिम लीगके प्रस्ताव, सुधारकी संयुक्त योजना तथा उन्नीस सदस्योंका प्रार्थनापत्र, संदर्भकी सहूलियतके लिए हमारे प्रार्थनापत्रके साथ नत्थी कर दिये गये हैं। हम आशा करते हैं कि वास्तविक स्वायत्त शासनकी जिस योजनाका लॉर्ड रिपनने स्वप्न देखा था उसके कार्यान्वित किये जानेके लिए और अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। लोक-सेवाका भारतीयकरण कराने के लिए हमारे श्रद्धेय देशवासी, स्वर्गीय दादाभाई नौरोजीने दीर्घकालतक कठिन प्रयत्न किया था। हमें आशा है वह भी काफी हदतक जल्दी ही किया जायेगा। न्याय-सेवकों और न्यायपालिका सम्बन्धी कार्योंको भी जल्दी ही कार्यपालिकासे बिलकुल पृथक् किया जाना चाहिए। यह सुधार प्रबुद्ध वर्गके हितोंकी अपेक्षा साधारण जनताके हितोंकी दृष्टिसे अत्यन्त आवश्यक है। हमें आशा है कि शस्त्रास्त्र अधिनियम और नियमों [आर्म्स ऐक्ट ऐंड रूल्ज़] में इस प्रकार संशोधन किया जायेगा कि उसमें से न केवल भारतीयोंके विरुद्ध जातीय भेदभावका चिह्न मिट जाये बल्कि उसमें भारतीयोंको यह अधिकार भी रहे कि वे कुछ शर्तोपर शस्त्रास्त्र रख सकें या लेकर चल सकें, और ये शर्तें वैसी ही हों जैसी कि अन्य सभ्य देशोंमें, स्वयं भारतकी ही अधिकांश रियासतोंमें, और ब्रिटिश भारतमें अमरीकियों और अंग्रेजोंके मामलेमें प्रचलित हैं। फौजमें भारतीयोंपर आयुक्त अधिकारी [कमीशंड अफसर] न हो सकनेका जो प्रतिबन्ध था उसके हटाये जानेपर भारतवासी अपनी कृतज्ञता प्रकट कर ही चुके हैं। देशको आशा है कि उनकी भरतीके नियम उदार होंगे, और योग्यता सम्बन्धी परीक्षा में सफल होनेवाले सभी वर्गोंके नौजवानोंके लिए सम्मानजनक और देशानुरागपूर्ण आजीविकाका रास्ता खोल दिया जायेगा। यह भी आशा है कि उनके प्रशिक्षण और परीक्षाकी आवश्यक सुविधाएँ भारतमें ही उपलब्ध की जायेंगी और काफी बड़ी संख्या में भारतीयोंको नियुक्त किया जायेगा। भारतीयोंको स्वयंसेवकोंकी हैसियत से भरती होने की अनुमति नहीं है, यह एक काफी पुरानी शिकायत है। किन्तु स्वयं-सेवकके रूपमें अपनी सेवाएँ अर्पित करनेकी जो प्रणाली अभीतक जारी रही है, वह समाप्त करनेको विचार हो, तो वैसी स्थितिमें हमारा विश्वास है कि युद्धके बाद भारतीय प्रतिरक्षा सेना [इंडियन डिफेंस फोर्स] को विघटित नहीं किया जायेगा, और यह अनुरोध है कि उसके भारतीय दस्तोंको यूरोपीय दस्तोंके साथ बिलकुल बराबरीका दर्जा प्रदान किया जाये।

साम्राज्यमें भारतका दर्जा

महानुभाव, अपनी बात समाप्त करनेसे पहले, हम आपका ध्यान जिस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बातकी ओर दिलायेंगे वह है साम्राज्य में भारतका दर्जा। एक शब्दमें कहें तो हमारी माँग यह है कि उसे अधीनताके स्तरसे उठाकर अन्य डोमिनियनोंके साथ बराबरीका दर्जा दिया जाये। इनके बीच वास्तविक और पूर्ण अर्थोंमें पारस्परिक सम्बन्ध होने चाहिए। हमारा निवेदन है कि यदि अन्य डोमिनियनोंको भारतसे सम्बन्धित मामलोंमें कुछ अधिकार