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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(च) किसी तात्कालिक महत्त्वके सार्वजनिक प्रश्नपर विचार करनेकी गरजसे कार्य-स्थगन प्रस्ताव पेश किया जा सकेगा, बशर्ते कि सदनमें उपस्थित सदस्यों में से कमसे-कम सदस्य उसके पक्षमें हों।

८. उपस्थित सदस्यों में से कमसे-कम १/८ सदस्योंकी माँगपर प्रान्तीय विधान परिषद्की विशेष बैठक बुलाई जा सकेगी।

९. स्वयं विधान परिषद् द्वारा रचे गये नियमोंके अनुसार वित्त विधेयकको छोड़कर अन्य कोई भी विधेयक विधान परिषद् में पेश किया जा सकेगा, और इसके लिए सरकारकी सहमति लेना जरूरी नहीं होगा।

१०. प्रान्तीय विधान परिषद् द्वारा पास किये गये सभी विधेयक गवर्नरकी स्वीकृति मिलनेके बाद ही कानून बन सकेंगे, लेकिन गवर्नर-जनरल यदि चाहे तो उनको निषिद्ध कर सकता है।

११. सदस्योंका कार्यकाल पाँच वर्ष होगा।

२―प्रान्तीय सरकारें

१. प्रत्येक प्रान्तीय सरकारका प्रधान एक गवर्नर होगा जो सामान्यतः भारतीय सिविल सर्विस या अन्य किसी स्थायी सेवाका सदस्य नहीं होगा।

२. प्रत्येक प्रान्तमें एक कार्यकारिणी परिषद् होगी जो गवर्नर सहित, प्रान्तकी कार्यपालिका सरकार होगी।

३. सामान्यतः भारतीय सिविल सर्विस के सदस्योंको कार्यकारिणी परिषद् में नियुक्त नहीं किया जायेगा।

४. कार्यकारिणी परिषद् के कमसे-कम आधे सदस्य भारतीय होंगे जिनका चुनाव प्रान्तीय विधान परिषद् के निर्वाचित सदस्य करेंगे।

५. सदस्यताकी अवधि पाँच वर्ष होगी।

३―शाही विधान परिषद्

१. शाही विधान परिषद् के सदस्योंकी संख्या १५० होगी।

२. ८० प्रतिशत सदस्य निर्वाचित सदस्य होंगे।

३. शाही विधान परिषद् के लिए, प्रान्तीय विधान परिषदोंमें मुसलमानोंके लिए मताधिकारकी जो व्यवस्था है उसीके अनुसार, यथासम्भव अधिकसे-अधिक लोगोंको मताधिकार प्रदान किया जायेगा और प्रान्तीय विधान परिषदोंको भी शाही विधान परिषद्के कुछ सदस्य चुननेका अधिकार होगा।

४. निर्वाचित सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य मुसलमान होंगे जिन्हें, विभिन्न प्रान्तीय विधान परिषदोंमें पृथक् मुसलमान मतदाताओं द्वारा चुने गये मुसलमान सदस्योंकी संख्याका जो अनुपात है, यथासम्भव उसी अनुपातमें विभिन्न प्रान्तोंके पृथक मुसलमान मतदाताओं द्वारा चुना जायेगा। देखिए खण्ड १, धारा ४ की अवधान धाराएँ।

५. विधान परिषद्के सभापतिका चुनाव विधान परिषद् स्वयं करेगी।