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परिशिष्ट

 

६―भारत और साम्राज्य

१. साम्राज्यीय प्रश्नोंका निबटारा या नियन्त्रण करने के लिए यदि किसी परिषद् या संगठनकी रचना की जाये तो उसमें भारतको अन्य डोमिनियनोंके साथ बराबरीके दर्जेपर और समान अधिकारोंके साथ समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाये।

२. पूरे साम्राज्य के अन्दर महामहिम सम्राट्के अन्य प्रजाजनोंको जो दर्जा और नागरिकताके अधिकार प्राप्त हैं वही दर्जा और नागरिकता के अधिकार भारतीयोंको प्रदान किये जायें।

७―सेना-विषयक तथा अन्य मामले

१. महामहिम सम्राट्की सेना और नौ-सेनामें कमीशन-युक्त और गैरकमीशन-युक्त सभी पदोंपर भारतीयोंको नियुक्त होनेका अवसर प्रदान किया जाये, तथा उनके चुनाव, प्रशिक्षण तथा शिक्षा आदिकी भारतमें समुचित व्यवस्था की जाये।

२. भारतीयोंको सेनामें स्वयंसेवकके रूपमें भरती होनेकी अनुमति दी जाये।

३. भारतमें कार्यपालक अधिकारियोंको न्याय-विषयक अधिकार नहीं दिये जायेंगे, और प्रत्येक प्रान्तकी न्यायपालिका उस प्रान्तकी सर्वोच्च अदालतके अधीन रहेगी।

[अंग्रेजीसे]
हिस्ट्री ऑफ द इंडियन नेशनल कांग्रेस, खण्ड १
 

परिशिष्ट ३

एल० एफ० मॉर्सहैडको लिखे गये जे० टी० व्हिटीके पत्रका अंश

[बेतिया
नवम्बर १७, १९१७]

...यह तथ्य है कि रैयत श्री गांधीकी प्रतिष्ठाके बारेमें अतिरंजित विचार रखती है, परन्तु खासे प्रमाणोंके आधारपर मुझे मालूम हुआ है कि कुछ मामलोंमें उनके निर्देश रैयतको पसन्द नहीं आये और रैयतने उन मामलोंमें उनकी आज्ञा माननेसे इनकार कर दिया। उदाहरणार्थ मुझे बताया गया है कि तुरकौलिया देहातमें जब श्री गांधीने रैयतको २० प्रतिशत शरहबेशीसे, जिसपर वे राज़ी हुए थे, कम देनेकी सलाह दी तो उन्होंने साफ कह दिया कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे और वे अब कह रहे हैं कि “गांधी हैं कौन?”

दो दिन पहले श्री गांधीने मुझे सूचित करते हुए लिखा था[१] कि उनके पास रैयतकी तरफसे इस आशयके कई सवाल आये हैं कि जिन गाँवोंमें तावान लिया जा चुका है उनमें लगानकी बढ़ोतरीके मुकदमे क्यों चल रहे हैं; और जब कि सात बरससे लगानमें

  1. यह उपधब्ध नहीं है।