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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। मुझे ऐसा लगा कि इस पूछताछसे सामान्य स्थिति और तत्सम्बन्धी कानूनके ज्ञानका असाधारण अभाव प्रकट होता है। स्पष्ट ही हम अपने मुकदमे वापस नहीं लेंगे क्योंकि हम तो केवल सात सालकी बढ़ोतरी अदा कर देना चाहते हैं और चाहते हैं कि इसका लेखा कानूनी लगानके रूपमें दर्ज हो जाये। और फिर हमारे पास अभीतक उन रैयतोंकी कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं है जिन्होंने वास्तवमें तावान अदा कर दिया है।

मैंने श्री गांधीको जवाब दिया कि आपका खयाल गलत है। आपकी गलतफहमी दूर करने में मुझे प्रसन्नता होगी; आप मुझसे मिल लें; परन्तु साथ ही मैं यह बता देना चाहता हूँ कि रैयतके लोग हमारे पास नहीं आये। मैं उन मामलोंमें, जिन्हें मैं खुद निपटा सकता हूँ, किसी मध्यस्थका होना पसन्द नहीं करता।

उन्होंन जवाब में कहा कि मैं समझ नहीं पाता कि सरकारी अफसर उन नेताओंकी मदद लेनेसे इनकार क्यों करते हैं जो उनकी अपेक्षा रैयतके अधिक सम्पर्कमें हैं और उद्देश्य तो दोनोंके कामोंका एक ही है। उन्होंने यह भी कहा कि वे आकर मुझे परेशान नहीं करना चाहते।

मैंने जवाब दिया कि जिस मामलेमें आप मेरे और मेरे काश्तकारोंके बीचमें पड़े हैं वह कोई उलझा हुआ मामला नहीं है। उसमें मुझे किसी बाहरी व्यक्तिकी मददकी जरूरत नहीं है। इसके सिवा यदि कोई मध्यस्थ बनकर काश्तकारोंके साथ सीधे सम्पर्क में आनेसे मुझे रोकता है तो मैं यह बात पसन्द नहीं करता।

श्री गांधीने यह मानने से इनकार किया कि उनका बीचमें पड़ना अनुचित है बल्कि उन्होंने अपनी शिक्षा-नीतिके बारेमें मिलनेकी इच्छा व्यक्त की।

मैं उनसे मिला और उनसे लम्बी बातचीत की और आयोगकी रिपोर्टमें उठाये गये अनेकों मुद्दोंपर विचार-विनिमय किया।

हमेशाकी तरह बातचीत में मैंने उन्हें प्राय: बहुत ही संगत पाया। उन्होंने नीलकी खेती अचानक बन्द होनेपर खेद व्यक्त किया। उनका अपना विचार था कि कुछ और समय दिया जाना चाहिए था। उन्होंने मुझे बताया कि लगान देने से इनकार करनेका कारण रैयतकी मूर्खता है। उसने आदेशोंका गलत मतलब समझा। जब कभी वे मेरे पास आये तो मैंने उन्हें समझाया कि उन्हें लगान तो हमेशाकी तरह देना ही चाहिए। श्री गांधीने कहा कि अब वे अपनी अर्जित प्रतिष्ठाका उपयोग गाँवोंमें सफाई और कृषिके तरीकोंको बेहतर बनाने में करना चाहते हैं। वे यथाशक्ति बागान-मालिकों और उनके किसानों के सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं।

उन्होंने अपने साथियोंका अमानके देहातमें कथित दंगोंके बारेमें पूछताछ करनेके लिए जाना सही माना। कहा जाता है कि इनमें पुलिसका हाथ था और यदि ऐसा है तो वे निःसन्देह रैयतके आमन्त्रणपर स्वयं इसी प्रकारकी पूछताछ करनेको तैयार हैं।

मैं अब भी मानता हूँ कि श्री गांधी स्वयं उन बातोंकी ओरसे उदासीन हैं जिन्हें वे अपना अन्तिम उद्देश्य मानते हैं। परन्तु अपनी प्रतिष्ठा बनाने और उसे मजबूत करनेके लिए वे अवश्य ही ऐसे तरीकोंका इस्तेमाल करेंगे जो आगे-पीछे जिलेकी शान्तिके लिए निश्चय ही खतरा उत्पन्न कर देंगे।