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पत्र : भगवानजी मेहताको


यद्यपि यहाँ उल्लिखित शिकायतें पुरानी है, किन्तु वे इतनी आवश्यक हैं कि उनकी ओर तुरन्त ध्यान देना चाहिए। आशा है कि आपका विभाग इस मामलेको जल्दी हाथमें लेगा। मेरी सेवाएँ आपके सुपुर्द है, आप उनका जिस तरह उचित समझें उपयोग कर सकते हैं।

आपका विश्वस्त,
मो॰ क॰ गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ६३९३) की फोटो-नकल तथा रेलवे डिपार्टमेंट रेकर्ड्स, मार्च १९१८ : ५५२—टी—१७ : १—२४, नेशनल आकाईब्ज़ ऑफ इंडियासे।

१३. पत्र : भगवानजी मेहताको

साबरमती
आश्विन बदी २ [नवम्बर १, १९१७][१]

भाईश्री,

तुम्हारा पत्र मिला। वीरमगाँवके[२] बारेमें मैंने बातचीत की है और उसके उत्तरकी प्रतीक्षा है। मुझे इसमें सन्देह नहीं कि यह बन्द होना चाहिए और होकर ही रहेगा।

पंजीयित पत्र मेरे पास है। आवश्यकता होगी तब जैसा तुम कहते हो वैसा कुछ-तो करूँगा।

काठियावाड़ आनेकी बड़ी इच्छा है परन्तु जब आ पाऊँ तब है। फिलहाल छः महीने तो बिहारके[३] लिए सुरक्षित हैं।

 
  1. बिहारके उल्लेखसे यह पत्र १९१७ में लिखा लगता है।
  2. यह ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र और काठियावाड़ रियासतोंको सीमापर स्थित था। यहाँ सरकारने चुँगी लगा दी थी जिससे रेल-यात्रियोंको बहुत असुविधा होती थी। मोतीलाल नामक एक दर्जीने सर्वप्रथम गांधीजीका ध्यान इस ओर आकर्षित किया था। देखिए आत्मकथा भाग ५, अध्याय ३। समस्याको पूरी तरह समझ लेनेके बाद गांधीजीने उसके बारेमें बम्बई सरकार और बादमें गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डनसे पत्र-व्यवहार किया। वाइसरॉय लॉर्ड चैम्सफोर्डसे अपनी भेंटके दौरान भी गांधीजीने इस कठिनाईका उल्लेख किया, जिसपर वाइसरॉयने कष्ट-निवारणका वचन दिया। अन्ततः नवम्बर १० को यह चुँगी समाप्त कर दी गई। देखिए "भाषण: प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषद्", ३—११—१९१७ और "प्रस्ताव: प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषद् में—२", ५—११—१९१७।
  3. चम्पारन, बिहारमें नीलकी खेती करनेवाले किसानोंकी समस्या सुलझ जानेपर गांधीजीने प्रान्तमें शिक्षा-प्रसार और स्वास्थ्य सम्बन्धी काम करनेका निश्चय किया था।