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भाषण : प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषदमें

पहले कभी नहीं आई थी। मेरे विचार सामान्य प्रवाहकी दिशामें नहीं बहते हैं। मुझे जान पड़ता है कि कुछ तो सामान्य प्रवाहकी उलटी दिशामें बहते हैं। ऐसी दशामें मुझे इस पदको स्वीकार करनेका अधिकार बहुत कम है। सभापतिका भाषण प्राय: सभाके विचारोंका दर्शक होता है। परन्तु मेरे विषयमें यह बात चरितार्थ न हो सकेगी। यह आपकी उदारता है कि ऐसे सुन्दर अवसरपर आपने मुझे अपने विचार गुजरातकी जनताके सामने रखनेकी अनुमति दी है। मेरे इन विचारोंपर इस सभामें टीका-टिप्पणी हो, उनसे मतभेद प्रकट किया जाये तथा उनका कड़ा विरोध हो तो इससे मुझे दुःख नहीं होगा। मैं तो यह चाहता ही हूँ कि उनपर खुलकर, पूरी-पूरी चर्चा हो। अपने इन विचारोंके सम्बन्धमें मैं इतना ही कहूँगा कि वे आजकलके नहीं, वरन् बहुत पुराने हैं। मैं तो उन्हींपर मुग्ध हूँ और इन ढाई वर्षोंके अनुभवसे उनमें कोई परिवर्तन भी नहीं हुआ है।

इस परिषद्की योजनाका विचार करनेवालों और उस विचारको कार्यका रूप देनेवालोंको मैं धन्यवाद देता हूँ। गुजरातके लिए यह एक महत्त्वकी घटना है और हम उसमें से बहुत सुन्दर परिणाम पैदा कर सकते हैं। यह परिषद् नींव-स्वरूप है। यदि नींव दृढ़ और मजबूत होगी तो मकानके विषयमें हम निश्चिन्त रह सकेंगे। यह परिषद् नींव-स्वरूप है, इससे इसका उत्तरदायित्व भी बड़ा है। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह हम सबको सुमति प्रदान करे और हमारा कार्य लोगोंके लिए भविष्यमें लाभदायी सिद्ध हो।

यह परिषद् राजनीतिक है। इस 'राजनीतिक' शब्दपर हम थोड़ा विचार करें। 'राजनीतिक' शब्द अंग्रेजीके 'पोलिटिकल' शब्दका अनुवाद है। अक्सर इस शब्दका संकुचित अर्थ किया जाता है, किन्तु मेरा खयाल है कि हमें उसका व्यापक अर्थ करना चाहिए। ऐसी परिषदोंकी इतिश्री यदि राजा-प्रजाके सम्बन्धोंके विचार-मात्रमें ही हो जाये तो इससे न केवल काम अधूरा रह जायेगा बल्कि इस विषयकी पूरी कल्पना भी हम न कर सकेंगे। उदाहरणके लिए, महुएके फूलोंका सवाल गुजरातके एक हिस्सेके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि ['राजनीतिक' शब्दके संकुचित अर्थमें] हम उसे एक राजनीतिक सवाल मानकर उसपर विचार करें तो सम्भव है उसका कड़वा परिणाम निकले या चाहा हुआ परिणाम न निकले। किन्तु यदि हम महुआ-सम्बन्धी कानूनकी उत्पत्तिका विचार करें और उसके साथ अपने कर्त्तव्यका भी विचार करें, तो सरकारसे अपनी लड़ाईमें हम ज्यादा जल्दी कामयाब होंगे और लड़नेकी चाबी भी हमें आसानीसे मिल जायेगी। मैं अपने जो विचार आपके सामने उपस्थित करनेवाला हूँ उससे आपको और स्पष्ट हो जायेगा कि राजनीतिक शब्दसे मेरा क्या अभिप्राय है।

अधिवेशन समाप्त होनेके पश्चात् परिषदें अपने पीछे कोई कार्यकारी मण्डल नहीं छोड़ जाती और यदि ऐसा कोई कार्यकारी मण्डल हो भी तो उसमें स्वर्गीय महात्मा गोखलेके[१] शब्दोंमें "अपने धंधोंसे समय मिलनेके बाद कार्य करनेवाले" होते हैं। हमें

 
  1. गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६-१९१५); भारतके एक प्रतिष्ठित नेता और राजनीतिज्ञ देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१७-१८।