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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

ऐसे आदमियोंकी आवश्यकता है जो परिषदोंके प्रस्तावोंको व्यवहारमें लाना ही अपना कार्य समझें। ऐसे ही आदमियोंके अधिक होनेसे परिषदोंका कार्य सुन्दर और सफल हो सकता है। अभी तो बहुत-सा कार्य व्यर्थ जा रहा है। देशमें भारत सेवक समाज जैसी संस्थाओंकी आवश्यकता है। सेवाको ही धर्म माननेवालोंकी संख्या जब अधिक होगी तभी हम बड़े परिणाम देखनेकी आशा कर सकते हैं। हमारे सौभाग्यसे भारत धर्म-बद्ध है इसलिए यदि यह विचार उत्पन्न हो जाये कि इस समय देशसेवा ही धर्मकी अन्तिम सीमा है तो धार्मिक वृत्तिवाले मनुष्य बड़ी संख्यामें राजनीतिक कार्य में सम्मिलित हो सकते हैं। मेरा विश्वास है कि जिस समय भारतके साधु-संत इस कामको अपने हाथोंमें ले लेंगे, उस समय भारत अपना अभीष्ट सरलतासे सिद्ध कर सकेगा। जो भी हो, परन्तु हमें इस परिषद्के कामके लिए एक कार्यकारी-मण्डल संगठित करना चाहिए जिसका काम परिषद्के उद्देश्योंको कार्य-रूपमें परिणत करना और कराना हो।

देशमें स्वराज्यकी ध्वनि गूँज रही है। विदुषी श्रीमती एनी बेसेंट लाखों स्त्री-पुरुषोंसे स्वराज्यका मन्त्र जपवा रही हैं। जिस बातको दो वर्ष पहले बहुतसे स्त्री-पुरुष नहीं जानते थे, श्रीमती बेसेंटने[१] अपनी चतुराई और अपने भारी प्रयत्नसे उसी बातका प्रचार कर दिया। लोगोंमें इस आशाका संचार करनेमें कि स्वराज्य दूर नहीं है उनका नाम इतिहासमें प्रथम पंक्तिमें लिखा जायेगा, इसमें सन्देह नहीं। स्वराज्य ही कांग्रेसका आदर्श था और है। स्वराज्यका विचार श्रीमती बेसेंटका दिया हुआ नहीं है, परन्तु यह स्वराज्य थोड़े दिनोंमें प्राप्त हो सकता है, इसका ज्ञान करा देनेवाली यही देवी हैं। इसके लिए उनका जितना उपकार माना जाये, कम है। उन्हें तथा उनके साथी श्री अरुण्डेल[२] और श्री वाडियाको[३] छोड़कर सरकारने कृपा की है तथा यह स्वीकार किया है कि स्वराज्यका आन्दोलन उचित है। हम चाहते हैं कि सरकारने जो उदारता श्रीमती बेसेंट एवं उनके साथियोंके प्रति दिखलाई है वही वह भाई मुहम्मदअली[४] और भाई शौकतअलीके प्रति भी दिखाये। सर विलियम विन्सेंटनें[५] इन दोनों भाइयोंके बारेमें जो कुछ कहा है उसमें विचार करने योग्य कितना है—इसकी जाँच करनेकी कोई जरूरत नहीं है। आशा है, प्रजाकी यह प्रार्थना स्वीकार करके सरकार उन्हें छोड़ देगी और उनके छोड़नसे कोई अयोग्य परिणाम न निकले, इसका उत्तरदायित्व प्रजापर ही रखकर उसको ऋणी बनायेगी। जबतक सरकार इनको न छोड़ेगी तबतक उसकी उदारता

 
  1. एनी बेसेंट (१८४७-१९३३); सुप्रसिद्ध वक्ता तथा थियोसोफिस्ट; १९१६ में भारतीय होमरूल लीगकी स्थापना की; १९१७ के कांग्रेस अधिवेशनकी अध्यक्ष।
  2. डॉ॰ जॉर्ज सिडने अरुण्डेल; एनी बेसेंट द्वारा संगठित राष्ट्रीय शिक्षा प्रसार समितिके अध्यक्ष; होमरूल लीगके सक्रिय कार्यकर्ता।
  3. बी॰ पी॰ वाडिया; होमरूल लीगके संघटनकर्ता।
  4. शौकतअलीके छोटे भाई और साप्ताहिक कॉमरेडके सम्पादक। सरकारने प्रथम विश्व-युद्ध शुरू होनेके तुरन्त बाद दोनों भाइयोंको नजरबन्द कर लिया था।
  5. सर विलियम विन्सेंट; गवर्नर-जनरलकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य, १९१७। भारतीय परिषद्के सदस्य, १९२३-३१।