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१४१. भाषण : रौलट विधेयकोंपर,

बम्बई
मार्च १४, १९१९

१४ मार्च, १९१९को रौलट विधेयकोंके विरोधमें बम्बईमें एक सार्वजनिक सभा हुई। गांधीजीका भाषण गुजरातीमें लिखा हुआ था, उसे उनके सचिवने पढ़कर सुनाया । भाषण निम्नलिखित है :

मुझे दुःख है कि अस्वस्थ होनेके कारण मैं स्वयं भाषण देनेमें असमर्थ हूँ और मुझे अपने विचार दूसरेसे पढ़वानेके लिए विवश होना पड़ा है। आप लोगोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि आज इस सभा में संन्यासी श्रद्धानन्दजी पधारे हुए हैं । वे हमारे बीच गुरुकुलके प्रशासक महात्मा मुंशीरामके नामसे अधिक परिचित हैं। हमारी सेनामें उनका सम्मिलित होना हमारे लिए प्रेरणाका स्रोत बन गया है । कदाचित् आपमें से बहुत-से सज्जन वाइसरायकी परिषद्की कार्रवाइयोंको बड़ी दिलचस्पीसे पढ़ रहे होंगे; विधेयक संख्या २ सरकारी बहुमतकी बदौलत सभी गैर-सरकारी सदस्योंके घोर विरोधके बावजूद भी धुंआधार गतिसे पास किया जा रहा है । मैं इसे गैर-सरकारी सदस्योंका, और उनके साथ समस्त भारतका अपमान समझता हूँ । विधिवत् व्यक्त किये गये लोकमतके प्रति आदर भाव सुनिश्चित करानेके लिए भी इन शरारतपूर्ण विधेयकोंको खत्म कराना आवश्यक हो गया है। जैसा कि मैं पहले कई बार कह चुका हूँ, सत्याग्रहमें पराजय-जैसी कोई वस्तु है ही नहीं, किन्तु मेरे कथनका यह अर्थ न लगा लेना चाहिए कि सत्याग्रहियोंको संघर्ष किये बिना ही, अर्थात् कष्ट झेले बिना ही, विजय प्राप्त हो सकती है । सत्याग्रहियोंके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। इस अद्वितीय शक्तिका प्रयोग अपेक्षाकृत एक नई बात है । सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध एक ही चीज नहीं हैं। निष्क्रिय प्रतिरोध वह शस्त्र माना गया है जिसे बहुत दृढ़संकल्प व्यक्ति ही कुशलतापूर्वक चला सकते हैं । विश्वास कीजिए कि इस प्रान्तमें रहनेवाले ६०० पुरुषों और स्त्रियोंने प्रतिज्ञापत्रपर हस्ताक्षर कर दिये हैं। अगर अपने उद्देश्यके प्रति उनकी श्रद्धा अटल है और वे दृढ़संकल्प हैं तो हमारे लक्ष्यकी सिद्धिके लिए यह संख्या पर्याप्त है । यह भी सच मानिए कि सत्यमें असत्यपर विजयी होनेकी क्षमता होती है । सत्याग्रहियोंका विश्वास है कि ये विधेयक असत्यके ही स्वरूप हैं। मैं यहाँ असत्यको उसके व्यापकसे-व्यापक अर्थमें लेता हूँ । जैसा कि सर विलियम विन्सेंट पहले कह भी चुके हैं, हमसे यह प्रायः कहा जायेगा कि सरकार निष्क्रिय प्रतिरोधकी धमकीके आगे झुकने वाली नहीं है । सत्याग्रह कोई धमकी नहीं है, वह तो यथार्थ है । अगर हम लोग अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ बने रहे तो भारत सरकार जैसी शक्तिशाली सरकारको भी घुटने टेकने पड़ेंगे। यह शपथ कोई छोटी चीज नहीं है । इस शपथको लेनेका मतलब हृदय परिवर्तन है । राजनीतिमें धार्मिकताका समावेश करनेका वह एक प्रयास है। हम अब 'जैसेको Gandhi Heritage Portal