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पत्र : मगनलाल गांधीको

तैसा' वाले सिद्धान्तको भुला दें, हमें अब घृणाका जवाब घृणासे और हिंसाका हिंसासे नहीं देना है । और न बदीका जवाब बदीसे देना है । किन्तु इतना ही काफी नहीं है। हमें तो अब बदीका बदला नेकीसे देनेका सतत प्रयत्न करना है । मेरा इन भावोंको व्यक्त करना कोई महत्त्व नहीं रखता । प्रत्येक सत्याग्रहीको उसे अपने आचरणमें उतारना है । यह काम कठिन अवश्य है, परन्तु ईश्वरकी कृपा हो तो असंभव कोई चीज नहीं है।

(जोरकी तालियाँ)

[ अंग्रेजीसे ]

महात्मा गांधी : हिज लाइफ़, राइटिंग्ज ऐंड स्पीचेज

१४२. पत्र : मगनलाल गांधीको

लेबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
फाल्गुन सुदी १५ [ मार्च १६, १९१९]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला है। अभी तुम मेरी ओरसे लम्बे पत्रकी आशा बिलकुल मत रखो । सन्तोक अब वहाँ आ जायेगी और तुम्हारा बोझ कुछ हलका हो जायेगा । और चूँकि वह राजकोटसे सफल होकर आयेगी इसलिए उल्लास भी कुछ ज्यादा रहेगा। महात्मा मुंशीरामजी १९ तारीखको रातकी गाड़ीसे सूरतसे रवाना होकर [ दूसरे दिन ] सवेरे अहमदाबाद पहुँचेंगे। यह ट्रेन वहाँ सवेरे छः बजे पहुँचती है । वे आश्रममें ही ठहरेंगे । २० और २१ तारीख तक रहेंगे । ये दो दिन, तुम अथवा कोई अन्य व्यक्ति जिसे वे जानते हों, उनकी सेवामें रहना । वे जहाँ जायें वहाँ साथ जाना । अहमदाबादमें जहाँ हाथकरघेका अच्छा काम होता है वहाँ उन्हें ले जाना । आश्रमकी सब प्रवृत्तियोंसे तो तुम उन्हें परिचित कराओगे ही। यह आवश्यक है कि शिक्षकोंके साथ उनकी अलगसे बैठक हो और वे सब कुछ समझें। इनके ऊपर प्रेमकी वर्षा करना । २० तारीखकी साँझको मजदूरोंका वार्षिक उत्सव है, वे उसमें जायेंगे । २१ वीं तारीखको वे सार्वजनिक सभामें भाषण करेंगे। और उसी दिन शामको अजमेर अथवा सूरतकी ओर रवाना हो जायेंगे । मोटरका बन्दोबस्त अनसूयाबेन करेंगी। लेकिन यदि भूल जायें तो तुम ही कर लेना । अहमदाबादसे आश्रममें मोटरमें ले जाना । इन्हें आश्रमके कपड़े के कुछ नमूने भी उपहारस्वरूप भेंट करना । जब जायेंगे... तुम्हारे ऊपर ...[१]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७७३) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी
 
  1. १. पत्रका बाकी भाग उपलब्ध नहीं है ।