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भाषण : सत्याग्रह आन्दोलनपर तूतीकोरिनमें


प्राचीन इतिहास बताता है कि इस सिद्धान्तको हमने अस्वीकार कर दिया है, और हमारे सब कार्योंके पीछे धार्मिक भावना रहती है । आप सब जानते हैं, या जानना चाहिए कि रौलट कानून क्या है । इसलिए इस कानूनका इतिहास बताने में मैं आपका समय नहीं लूँगा । यह सम्पूर्ण भारतके लिए समान रूपसे चिन्ताकी बात है कि यदि यह कानून विधि-पुस्तिकामें बना रहा तो सारे देशके लिए कलंककी बात होगी । हमने अपने शासकों से कहा कि वे इस कानूनको पास न करें। लेकिन उन्होंने हमारी प्रार्थना बिलकुल अनसुनी कर दी है। इस तरह उन्होंने सारे राष्ट्रके प्रति दोहरा अन्याय किया है । हमने देखा है कि हमारी तमाम सभाओं, हमारे तमाम प्रस्तावों, और केन्द्रीय विधान- परिषद् में हमारे प्रतिनिधियोंके तमाम भाषणोंका कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, हमें इस कानूनको किसी-न-किसी तरह हटवाना चाहिए। हमारे सामने दो, और सिर्फ दो ही रास्ते हैं । पहला तरीका अन्याय करनेवालेपर हिंसा करनेका आधुनिक या पश्चिमी तरीका है। मेरा मत है कि भारत इस तरीकेको अस्वीकार कर देगा । भारतके विशाल जन समुदायको हिंसा करनेकी शिक्षा हमारे धर्म-गुरुओंने कभी नहीं दी। दूसरा तरीका वह है जिससे हम प्राचीन कालसे परिचित हैं । वह है शासकोंकी गलत बातोंकी अवज्ञा करके अवज्ञाके परिणामोंको सहन करनेका । इस प्रकार कष्ट सहनका तरीका ही सत्याग्रह है । यह प्रह्लादका तरीका है और मैं नम्रतापूर्वक यह कहनेका साहस करता हूँ कि हमारे सामने यही एक रास्ता है जो हम अपना सकते हैं। इसमें पराजय होती ही नहीं क्योंकि हम तवतक संघर्ष करते हैं जबतक मर नहीं जाते या हमें विजय नहीं मिल जाती। लेकिन आज हमारे मनमें शंकाकी भावना घर कर गई है। हममें से बहुत लोग प्रह्लादकी कहानीको कोरा किस्सा कहकर टाल देंगे ।

इसलिए आज मैं यथासम्भव संक्षेपमें आधुनिक ऐतिहासिक सत्याग्रहियोंकी कहानी बताऊँगा । मैंने उन्हींको चुना है जो मर चुके हैं। इनमें से तीन लोग तमिल थे, और एक बम्बई प्रेसीडेन्सीका एक मुसलमान था । तमिलोंमें एक अठारह वर्षीय सुन्दर बालिका थी जिसका नाम वलिअम्मा था । उन दो लड़कोंकी भाँति ही, जिनके नाम मैं अभी आपको बताऊँगा, वह भी दक्षिण आफ्रिकामें पैदा हुई थी । उसे जेल भेजा गया जहाँ उसे मोतीझरा (टाइफाइड) हो गया लेकिन उसने रिहा होनेसे इनकार कर दिया । जेलमें ही इसीके कारण उसकी मृत्यु हो गई ।[१]अन्य दोमें से एककी आयु १८ और दूसरेकी १७ वर्ष थी, और ये दोनों जेलसे रिहा होनेके बाद मरे । ये तीनों ही गिरमिटिया मजदूरों की सन्तान थे। हममें से बहुतोंको जैसी शिक्षा प्राप्त हुई, वह उन्हें नहीं मिली थी । 'रामायण' और 'महाभारत'की उन्हें धुंधली जानकारी-भर थी । दक्षिण आफ्रिकामें धर्मकी शिक्षा देनेवाला कोई नहीं था जो उनके मनपर प्रह्लादके अदम्य कार्योंकी छाप डालता। लेकिन आज वे अपना नाम वीरों और वीरांगनाओंके साथ लिखा हुआ पाते हैं। चौथे वीरका नाम था अहमद मुहम्मद काछलिया । वह वीरोंमें वीर था । मैंने

 
  1. १. यह संवाददाताकी भुल जान पड़ती है; वलिअम्माको मृत्यु वास्तवमें जेलसे रिहा होनेके कुछ दिन बाद हुई थी । देखिए " भाषण : तिरुचिनापल्ली में”, १५-३-१९१९ की पादटिप्पणी १ ।