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सन्देश : मद्रासकी सभाके लिए

उद्देश्योंसे बनाये जाते हैं या ये ऐसे राजनीतिक कानून होते हैं जिनमें विधानकी दृष्टिसे अपराधोंका निरूपण किया जाता है । इन्हीं कानूनोंके बलपर सरकार अपनी सत्ता कायम रखती है । इसलिए जब सरकार इतनी बुरी हो जाये कि वह राष्ट्रीय-जीवनको आघात पहुँचाये, जैसा कि वह रौलट कानूनोंकी रूसे कर रही है, तो लोगोंको हक हो जाता है, बल्कि यह उनका धर्म बन जाता है कि वे सरकारको राष्ट्रकी इच्छाके सामने झुकाने के लिए जहाँतक आवश्यक हो वहाँतक ऐसे कानूनोंकी अवज्ञा करें । मेरी यात्राके दरम्यान एक और शंका उठाई गई है, और यही शंका कुछ भाइयों ने पत्र लिखकर उठाई है। पूछा गया है कि कानून-भंगके लिए कानून चुननेका काम एक समितिको सौंपना सत्याग्रहके सिद्धान्तके अनुसार कहाँतक ठीक है । उनका तर्क है कि ऐसे चुनावका सवाल दूसरोंके हाथोंमें सौंपकर हम अपनी अन्तरात्मापर दूसरोंको काबिज हो जाने देते हैं । किन्तु, इस शंकासे प्रतिज्ञाके बारेमें गलतफहमी लक्षित होती है । प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करनेवाला व्यक्ति तो यह संकल्प करता है कि वह आवश्यकता होनेपर उन सभी कानूनोंको भंग करेगा जिन्हें भंग करना सत्याग्रहीके लिए उचित है । परन्तु उसपर यह बन्धन नहीं है कि उसे ऐसे सभी कानून भंग करने ही चाहिए। इसलिए अपनी अन्तरात्माके निर्देशका पूरी तरह पालन करते हुए भी इस निर्णयको कि कौन-से कानून भंग किये जायें उन लोगोंके विवेकपर छोड़ दिया जा सकता है जो इन मामलोंमें विशेषज्ञ हैं और खुद भी प्रतिज्ञाकी मर्यादाओंसे निश्चित रूपसे बँधे हुए हैं। यह सम्भव है कि वह चुनाव किसी हस्ताक्षरकर्ताकी दृष्टिसे ऐसा न हो जिसमें तोड़ने योग्य सभी नियम आ गये हों ।

मुझसे यह भी कहा गया है कि देशके जीवनमें सबसे अधिक महत्त्व रखनेवाली एक ही बात है आगामी सुधार; और मैं उस ओरसे भी लोगोंका ध्यान हटा रहा हूँ । किन्तु, मेरे विचारसे तो रौलट कानून प्रगतिके पूरे ही मार्गमें और इस प्रकार किसी भी ठोस सुधारके मार्गमें बाधा बनकर खड़े हैं; प्रवर समितिने ठीक ही कहा है कि उनमें जो संशोधन किये गये हैं उनसे उनके सिद्धान्तोंमें कोई परिवर्तन नहीं होता। मैं समझता हूँ पहली आवश्यक बात इस सिद्धान्तको खुले तौरपर पूरी-पूरी मान्यता देना है कि उचित रूपसे व्यक्त लोकमतका सरकारको आदर करना चाहिए । मैं इस सिद्धान्तमें विश्वास नहीं करता कि कोई सत्ता एक ही साथ लोगोंपर विश्वास भी रखे और उनका अविश्वास भी करे; उन्हें स्वतन्त्रता भी दे और उनका दमन भी करे। मुझे यह अधिकार है कि जो सुधार होनेवाले हैं, उनकी व्याख्या में रौलट कानूनोंके प्रकाशमें करूँ; और मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि यदि हम अपने मार्गमें से रौलट कानून रूपी महाविघ्नको दूर करने लायक जोर नहीं लगायेंगे, तो ये सारे सुधार ऊपरी ताम-झाम ही साबित होंगे ।

अभी एक और आपत्तिका उत्तर देना शेष है । कुछ भाइयोंका कहना है कि 'हमें बोल्शेविज्मके आक्रमणका जो भय बना हुआ है, वह आपके सत्याग्रह-आन्दोलनसे बढ़ जाता है।' परन्तु हकीकत यह है कि हमारे देशपर इस आफत के टूट पड़नेको यदि कोई चीज रोक सकती है तो वह सत्याग्रह ही है । बोल्शेविज्म आधुनिक भौतिकतावादी सभ्यताका आवश्यक परिणाम है । भौतिकताकी अन्ध उपासनाके परिणामस्वरूप