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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वास्थ्यके खयालसे शोरगुल करनेसे मुँह मोड़ रहे हैं; किन्तु साथ ही वे यह भी समझते हैं कि उन्हें कुछ उच्चतर कारणोंसे भी ऐसा नहीं करना चाहिए। आन्दोलनके नेता भी आत्म-संयमकी आवश्यकताको भली-भाँति समझ गये हैं । इन अनुभवोंसे मुझे भविष्य के लिए भारी आशाएँ बँधती हैं। हमारे मित्रोंको जिन जोखिमोंका डर है, उनका डर मुझे नहीं है; और मैंने जिन अनेक सभाओंका उल्लेख किया है, उनसे मेरी इस आशावादिताकी पुष्टि होती है। इसके अलावा, मैं यह कहनेका साहस भी करूँगा कि उस खतरेको टालनेके लिए मनुष्यके लिए जितनी सावधानी रखना सम्भव है, उतनी रखी जा रही है और रखी जायेगी। यही कारण है कि हमारी प्रतिज्ञामें हस्ताक्षरकर्त्ताओंके लिए यह बन्धन रखा गया है कि जिन कानूनोंको सत्याग्रहियोंकी समिति चुनेगी, केवल उन्हीं कानूनोंकी सविनय अवज्ञा की जायेगी ।[१] और मुझे इस बातसे बड़ी प्रसन्नता होती है कि हमारे सिन्धी भाइयोंने प्रतिज्ञाको अच्छी तरह समझा है, और हैदराबादके पुलिस कमिश्नरने उनके शान्तिपूर्ण जुलूसको रोकनेका जो हुक्म जारी किया था, उस हुक्मको उन्होंने मान लिया है; क्योंकि वर्तमान आन्दोलनमें यह बात शामिल नहीं है कि देशके उन सभी कानूनोंको तोड़ा जाये जिनको तोड़ना सत्याग्रहियोंकी प्रतिज्ञाके प्रतिकूल नहीं पड़ता। जिसकी सहज वृत्ति कानूनका पालन करनेकी न हो, वह सत्याग्रही किसी कामका नहीं और कानून पालन करनेकी उसकी वृत्ति ही उससे सर्वोच्च कानूनका, अर्थात् अन्तरात्माकी आवाजका, जो सब कानूनोंसे ऊपर है, पालन कराती है । वह कुछ कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करता है, परन्तु वह भी केवल जाहिरा अवज्ञा ही है । हरएक कानून लोगोंको एक विकल्प देता है, अर्थात् यह कि वे या तो उसका पालन करें या उसकी अवज्ञाके फलस्वरूप उन्हें जो दण्ड दिया जाये उसे स्वीकार करें। और मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि सत्याग्रही उसके दूसरे बन्धनको सहर्ष स्वीकार करके कानूनका पालन ही करते हैं । उनका आचरण उन साधारण अपराधियोंसे भिन्न है जो देशके कानूनोंकी, चाहे वे अच्छे हों या बुरे, अवज्ञा ही नहीं करते, बल्कि उस अवज्ञाके परिणामोंसे भी बचना चाहते हैं। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि किसी भी अवांछनीय परिणामको टालनेके लिए बुद्धिसंगत सभी तरहकी सावधानी बरती गई है।

कुछ भाई कहते हैं कि आप रौलट-कानूनोंको भंग करें, यह तो समझमें आता है, हालांकि उनमें भी सत्याग्रहीकी हैसियतसे आपके लिए भंग करनेकी कोई बात नहीं है, लेकिन दूसरे कानूनोंको, जिन्हें आप अबतक मानते आये हैं और जो अच्छे भी हो सकते हैं, आप कैसे भंग कर सकते हैं ? जहाँतक अच्छे कानूनोंका, यानी नैतिक सिद्धान्तोंका निर्धारण करनेवाले कानूनोंका सम्बन्ध है, सत्याग्रही उन्हें न तो तोड़ सकते हैं, और न उनको तोड़नेकी बात प्रतिज्ञामें सोची ही गई है। किन्तु कुछ ऐसे कानून भी हैं, जो न अच्छे हैं और न बुरे -- न नैतिक हैं और न अनैतिक । ऐसे कानून उपयोगी भी हो सकते हैं और हानिकर भी । इनका पालन लोग उस चीजको ध्यानमें रखकर करते हैं जिसे देशका सुशासन कहा जाता है। ऐसे कानून या तो राजस्व-सम्बन्धी{{smallrefs}

  1. . देखिए "वक्तव्य : सत्याग्रह सभाकी ओरसे", ७-४-१९१९ ।