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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

गुरुदेवके स्वास्थ्य के बारेमें तुमने जो समाचार भेजा है उससे मेरा मन दुःखित हुआ है। उन्हें क्या तकलीफ है ? मुझे पूरा यकीन है अब वे पहलेसे काफी अच्छे होंगे। मैं गुरुवार ता० ३ अप्रैलको बम्बई पहुँच रहा हूँ। इस माहमें में २२ तारीख तक ऐसा समझो कि बम्बई और अहमदाबादके बीच चक्कर लगाता रहूँगा । इन दिनोंमें तुमसे मिलना हो जाता तो उत्तम होता। इस बीच मैं तुम्हें यह तो बता ही दूं कि प्रतिज्ञासे मेरा क्या तात्पर्य है। मुझे यह देखकर कुछ आश्चर्य हो रहा है कि तुम उसका सीधा-सा अर्थ समझ नहीं पाये। हस्ताक्षरकर्त्ता इस बात के लिए वचन बद्ध होता है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह चिरस्थायी सत्योंका विधान करनेवाले कानूनोंको छोड़कर बाकी सब कानूनोंको तोड़ेगा। परन्तु कोई सत्याग्रही मनमानी न करने लगे इसलिए तोड़े जानेवाले कानूनोंके चुनावका और उन्हें किस क्रममें तोड़ना चाहिए बातका निर्णय स्वयं न करके विशेषज्ञोंके हाथमें सौंपता है । निश्चय ही यह मामला अन्तरात्मासे सम्बन्ध नहीं रखता। यदि समितिसे जो उसी प्रतिज्ञाके द्वारा बँधी हुई है जिससे कि सत्याग्रही बँधा हुआ है, कोई भूल होती है और वह तोड़नेके लिए ऐसे कानूनोंको चुनती है जो सत्याग्रहसे असंगत बैठते हैं तो स्वभावतः वह हस्ताक्षरकर्ता सत्याग्रही जिसकी अन्तरात्मा कानून भंगको सत्याग्रह से असंगत मानती है उस कानूनको नहीं तोड़ेगा । सत्याग्रहके प्रत्येक संगठनमें यह अन्तिम स्वतन्त्रता मान ली गई है। क्या मैं अपना मतलब साफ तौरपर नहीं व्यक्त कर पाया हूँ ? तोड़े जानेवाले कानूनों- को चुननेका उत्तरदायित्व समितिको सौंपा जाना प्रतिज्ञाका सबसे सुन्दर अंग है । अगर ऐसा न किया गया होता तो गड़बड़ीका ठिकाना न रहता । सिन्धकी घटनाको ही ले लीजिये । वहाँ पुलिस अधीक्षकने एक निर्दोष जुलूसका निकाला जाना निषिद्ध किया था । सत्याग्रहियोंने आदेशका पालन इसलिए किया कि वे सत्याग्रह- समितिकी अनुमतिके बगैर किसी भी अवस्थामें सत्याग्रह न करनेके लिए वचनबद्ध थे । उनकी पहली इच्छा तो यही होती कि उस प्रतिबन्धकी अवहेलना की जाये। इस प्रकारकी जल्दबाजीका परिणाम आगे चलकर गम्भीर हो सकता था । दक्षिण आफ्रिका में इस बातका निर्णय कि कौन-कौनसे कानून तोड़े जायें और कब तोड़ जायें मेरे विवेकपर छोड़ दिया गया था । यहाँ समितिका विचार मेरे सुझावपर ही किया गया था । परन्तु ऐसी प्रत्येक समितिका अध्यक्ष मैं हूँ । जिन कतरनोंको मैं तुम्हारे पास भेजता रहा हूँ -- आशा है तुम उन्हें यथावकाश पढ़ लेते होंगे । अब पत्र समाप्त करता हूँ; मिलनेवाले प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

मैं गुरुदेवका तथा तुम्हारा कोई लेख, अगर तुम भेज सको, प्रकाशित करनेका बहुत इच्छुक हूँ ।

सस्नेह,

तुम्हारा,

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ६४८९) की फोटो नकलसे ।