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१८८. स्वदेशी व्रत-१

[ अप्रैल ८, १९१९][१]

आज लोगोंकी एक बहुत बड़ी संख्या स्वदेशी व्रत लेनेकी भावनासे भरी हुई है, और यह बात वास्तवमें हर प्रकारसे प्रशंसनीय है। फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि इस व्रतके पालनमें जो कठिनाइयाँ हैं, उन्हें वे पूरी तरह नहीं समझते। कोई व्रत ऐसे कार्योंको पूरा करनेके लिए ही लिया जाता है जिसे पूरा करना अन्यथा कठिन होता है। बहुत प्रयत्न करनेपर भी जब हमें किसी कार्यमें सफलता प्राप्त नहीं होती, तब हम उसे करनेका व्रत लेकर अपने-आपको इस प्रकार बाँध लेते हैं कि जिसमें से छूट ही न सकें और इस तरह असफलताकी कोई गुंजाइश नहीं रहने देते। ऐसे दृढ़ निश्चयसे कम किसी निश्चयको व्रत ही नहीं माना जा सकता। यदि कोई यह कहे कि जहाँतक हो सकेगा, अमुक कार्य करेंगे, तो यह प्रतिज्ञा या व्रत लेना नहीं कहा जा सकता। यथाशक्ति स्वदेशी चीजें ही काममें लेंगे, हम, स्वदेशी-व्रतधारी कहला सकते हों, तब तो वाइसरायसे लेकर थोड़े ही आदमी होंगे, जिनके बारेमें यह कहा जायेगा कि उन्होंने प्रतिज्ञा नहीं ली है। किन्तु हम इस घेरेसे बाहर निकलकर एक बहुत ही उच्चतर लक्ष्यकी ओर बढ़ना चाहते हैं। और हमारा जो करनेका इरादा है उसमें और उपर्युक्त कामोंमें उतना ही अन्तर है, जितना समकोण और अन्य कोणोंमें होता है। यदि हम स्वदेशी व्रत इसी भावनासे लेनेका विचार करें, तो यह स्पष्ट है कि अभी सब चीजोंके सम्बन्धमें ऐसा व्रत लेना लगभग असम्भव ही है।


मैंने तो बहुत वर्षोंके गहरे विचारके बाद यह स्पष्ट देख लिया है कि हम यह व्रत पूरी तरह सिर्फ अपने वस्त्रोंके सम्बन्धमें ही ले सकते हैं चाहे वे सूती हों या रेशमी अथवा ऊनी। हमें इतना व्रत पालनेमें भी शुरूमें तो बहुत-सी मुसीबतें उठानी पड़ेंगी और यह उचित ही है। विदेशी वस्त्रोंको प्रश्रय देकर हमने घोर पाप किया है। हमने एक ऐसे धन्धेकी उपेक्षा की है, जिसका महत्त्व कृषिके बाद सबसे अधिक है । जिस पेशेके लोगोंके घर कबीरका जन्म हुआ और जिसे उन्होंने स्वयं भी गौरवान्वित किया, आज हमारे सामने उसी धन्धेकी समाप्तिकी स्थिति उपस्थित हो गई है। मैंने जो स्वदेशी व्रत सुझाया है उसका एक मतलब यह है कि इसे अपनाकर हम अपने पापोंका प्रायश्चित्त करना चाहते हैं, हाथ-बुनाईकी दम तोड़ती कलाका जीर्णोद्धार करना चाहते हैं, और इस बातके लिए कृतसंकल्प हैं कि विदेशी कपड़के बदले प्रतिवर्ष देशसे जो करोड़ों रुपये बाहर जाते हैं,उनकी अपने देश हिन्दुस्तानके लिए बचत

  1. १एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको बम्बईसे ८ अप्रैलको भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया था: "श्री गांधी दिल्लीके लिए रवाना हो गये हैं। उनकी अनुपस्थितिमें स्वदेशी शपथ-ग्रहण समारोह, जो आजके लिए तय था, स्थगित कर दिया गया है। जानेसे पहले श्री गांधीने व्रत लेनेके इच्छुक सज्जनोंके लिए दिये गये सन्देशमें स्वदेशी और वहिष्कारके अन्तरका स्पष्टीकरण किया था।"