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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रहके मार्गपर रखें, तभी और उसी हदतक साधनके रूपमें कामकी हैं । भारतमें हमें यह चीज पुरातन कालसे ही सिखा दी गई है। इसलिए हमें यह महावाक्य पढ़ाया गया है कि वसुधा अर्थात् जगत्-मात्र कुटुम्ब है । और मैं अनुभवपूर्वक कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक राष्ट्र अपना राष्ट्रीय जीवन पूरी तरह सत्याग्रह के अनुसार चला सकता है । इतना ही नहीं, सत्याग्रहके अनुसार चले बिना राष्ट्रीय जीवनकी पूर्णता असम्भव है। सत्याग्रहपर आधारित ऐसा जीवन ही सच्चा धार्मिक जीवन है। जो जाति दूसरी जातिके साथ लड़ाई करती है, वह थोड़ी-बहुत हद तक धार्मिक जीवनका त्याग करती है । मैं अपना यह विश्वास कभी नहीं छोड़ सकूँगा कि भारत यह सत्य सारे संसारको देनेकी योग्यता रखता है । मैं चाहता हूँ कि इस अडिग श्रद्धामें सभी हिन्दुस्तानी स्त्री-पुरुष, हिन्दू-मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी सभी मेरे हिस्सेदार बनें।

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

२३२. भाषण : बम्बई में

अप्रैल २५, १९१९

लोगोंको सच्चे सत्याग्रहकी आत्माके विरुद्ध कुछ भी नहीं करना चाहिए। अहमदाबादकी घटनाओंसे सबको सबक लेना है। वहाँके झगड़ोंका क्या परिणाम निकला ? अनुमानतः ढाई सौ व्यक्ति घायल हुए और ५० से भी अधिक व्यक्ति मृत्युको प्राप्त हुए। इसके लिए मैं सरकारको दोषी नहीं मानता। इसके लिए तो हम ही उत्तरदायी हैं। मैं चाहता हूँ कि यह पाठ आप सब सीख लें । सत्याग्रहकी लड़ाई समाप्त नहीं हुई है। उसे केवल थोड़े अर्से के लिए मुलतवी कर दिया गया है और उसको तभी पुनःप्रारम्भ किया जायेगा जब मुझे विश्वास हो जायेगा कि लोग सत्याग्रहके मर्मको समझ गये हैं।

[ गुजरातीसे ]

गुजराती, ४-५-१९१९

२३३. पत्र : चन्द्रशंकर पंडयाको

अप्रैल २६, १९१९
के आसपास

तुम्हारा पत्र पढ़कर तो बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि मैं यह जाननेको उत्सुक था कि तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है। ऐसा ज्यादा तुम्हें क्या रोग है कि तुम अभी तक अच्छे नहीं हो रहे हो ? आगरेमें 'कूने'-स्नान करानेवाली एक संस्था है। पण्डित हृदयनाथ कुँजरू मुझसे उसकी बड़ी प्रशंसा करते थे। तुम आगरेमें ही हो, इसलिए वहाँ जाकर थोड़े कूने-स्नान लोगे तो कदाचित् ठीक हो जाओगे।