पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहिए । आश्रममें सूत कातनेका काम अवश्य होना चाहिए। मैं फिलहाल वहाँ आ सकूँगा, यह सम्भव नहीं जान पड़ता।

अपनी सेहतका ध्यान रखना ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

२५७. पत्र : हरिलाल गांधीको

मई ५, १९१९

[चि० हरिलाल, ]

तुम्हारा चैत्र बदी १० का पत्र मिला है; मेरा स्वास्थ्य अब कुछ लड़खड़ाने लगा है। दिमागपर बहुत भार रहता है। ईश्वरको जबतक इस शरीरसे काम लेना होगा, तबतक वह इसको निभा लेगा। 'इंग्लिशमैन' मेरे पढ़नेमें नहीं आया और न आता ही है। मुझे वहाँकी कतरनें भेजते रहो, तो अच्छा हो ।

श्रीमती बेसेंटकी स्थिति दयनीय है। उन्हें कुछ सूझता ही नहीं कि वे कौन- सा मार्ग अपनायें ।

क्या सरकार सचमुच रौलट विधेयक[१]नामंजूर कर देगी ? तुम यह सवाल पूछ ही कैसे सकते हो ? जबतक सत्याग्रही जीवित हैं, तबतक रौलट विधेयक कैसे टिक सकते हैं ? मैं तो मानता हूँ कि यदि खून-खराबी तनिक भी न हो, तो थोड़े समयमें ही रौलट विधेयक रद हो जायेंगे। यह खबर इसलिए नहीं दे रहा हूँ कि मुझे कुछ मालूम है, परन्तु सत्याग्रहके प्रति अपने अटल विश्वासके कारण देता हूँ।

भाई प्रागजीको मैंने रोका नहीं; मैंने उन्हें खुद उन्हीं [ की मरजी] पर छोड़ दिया है। अब तो वे मद्रास जानेके निश्चयपर पहुँच गये जान पड़ते हैं ? पार्वतीको भी मद्रास ले जानेका निश्चय किया है, इसमें भी में बीचमें नहीं पड़ता हूँ ।

तुम्हारा दक्षिण आफ्रिका जाना मुझे तो उचित नहीं जान पड़ता। मैं तो यह चाहता हूँ कि चूँकि तुम सबने सत्याग्रहीका नाम धारण किया है, इसलिए तुम कम लाभसे सन्तोष करके केवल स्वदेशी व्यापार करो ।

बच्चे मौज करते हैं। राजकोट या कलकत्तेको बहुत याद करते हों, ऐसा मैंने तो नहीं देखा। उन्हें आबोहवा अनुकूल आ गई मालूम पड़ती है। यह मुख्य सन्तोषकी बात है। ऐसा लगता है, रामी ठीक होती जा रही है। यहाँसे अच्छीसे-अच्छी किस्मका जीवन[२] उसके लिए भेजा है।


माधवदासने तुम्हारी पैसेकी कठिनाईकी बात कही है। उसने मेरी सलाह मान ली। मैंने यह सलाह दी है कि तुम किसी भी व्यक्तिके पैसेकी मददके बिना उन्नति करो,

  1. १. पेश किये गये दो विधेयकों में से एक वापस ले लिया गया था और दूसरा मार्च १८, १९१८ को पास कर दिया गया था।
  2. २. च्यवनप्राशका प्रचलित गुजराती नाम ।