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भाषण : खिलाफतके सम्बन्ध में


सान्त्वना देनेके लिए क्या कर सकता हूँ। मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि मैं इस बीच इस विषय में निष्क्रिय नहीं था । मैं सरकारसे पत्र-व्यवहार कर रहा था और वाइसरायको एक खुली चिट्ठी लिखी थी। आप मुझसे पूछेंगे कि आप तो हिन्दू हैं और आपको इस प्रश्नसे परेशान होनेकी क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर यह है कि मुझे अपना जीवन आपके सहवासमें और पड़ौसमें बिताना है। यदि आपको दुःख होगा तो उसमें मेरा भाग भी है । और सुख होगा तो उसमें भी । इसलिए भाइयो, आपके दुःखोंके सम्बन्धमें भी मुझे बहुत चिन्ता है। मुसलमान भाइयोंपर जो मुसीबत आई है वह दूसरी मुसीबतोंकी तुलना में असह्य है ।

खिलाफत के मामलेमें तीन मुख्य प्रश्न आते हैं : १. खिलाफत (खलीफाके पद ) का प्रश्न, २. मक्का शरीफ और मदीना शरीफका प्रश्न और ३. फिलिस्तीनका मामला । और इनके सम्बन्धमें ऐसा होना चाहिए कि टर्कीके यूरोपीय विभागके लोग जो कुछ चाहते हैं वे वैसा न कर सकें। शायद शस्त्र बलसे तो वे वैसा कर ही नहीं सकते; किन्तु चूँकि पाँच करोड़ मुसलमानोंकी भावनाको ठेस पहुँचती है, अतः यों इसका भी खयाल किया जाना चाहिए। पाँच करोड़ मुसलमानोंका दिल दुखता है, इसका अर्थ में यह समझता हूँ कि तीस करोड़ लोगोंका दिल दुखता है। अब मक्का और मदीनाके सवालके बारेमें मुझे यह कहना है कि ये मुस्लिम तीर्थ किसी दूसरी हुकूमतमें नहीं रह सकते; क्योंकि मैं हरएक धर्मके बारेमें कुछ समझता हूँ । फिलिस्तीन भी मुसलमानोंके हाथोंमें ही रहना चाहिए। लड़ाईसे पहले था भी उन्हीं के हाथोंमें । यदि कोई जाति किसीके धर्म-स्थानोंपर बलात् अधिकार करनेके लिए आये तो ब्रिटिश सरकारको बीचमें पड़कर उनकी रक्षा करनी चाहिए। जो चीजें लड़ाईमें चली गईं, मुसलमानोंको उनको अंग्रेजोंसे माँगनेका हक है। इसके लिए हिन्दुओं और मुसलमानोंकी भावना एक होनी चाहिए। खासतौर से इस समय हिन्दुओं और मुसलमानोंमें मेल होनेकी जरूरत है। हम सब जब इसी भारतमातासे उत्पन्न हुए हैं तो हममें भेदभाव क्यों होने चाहिए ?

आज मुझे आपको एक और बात यह बतानी है कि आप एक अर्जी तैयार करके अपनी माँगें यथासम्भव शीघ्र सरकारके सामने प्रस्तुत कर दें । हिन्दू आपकी सहायता करनेके लिए तैयार रहेंगे, किन्तु पहले माँग तो आपको ही करनी चाहिए। मैंने अभी चार-पाँच दिन पहले 'टाइम्स' [ ऑफ इंडिया ] में इसी सम्बन्ध में एक टिप्पणी पढ़ी थी । उसमें कहा गया है कि मुसलमानोंकी माँग क्या है, यह सरकारको मालूम ही नहीं है । यद्यपि मुसलमान नेताओंके भाषणोंमें इस प्रश्नकी खासी चर्चा की जा चुकी है, किन्तु फिर भी सभी नेताओंको मिलकर सरकारके सामने अपनी माँग रखनी चाहिए। सब मुसलमान भाइयोंको समझ लेना चाहिए कि ऐसी अर्जी सरकार और जनताके सम्मुख रखना, उनका ही कर्त्तव्य है । इसमें आपको मेरी सहायताकी आश्यकता हो तो मैं इतनी ही सहायता दे सकता हूँ कि मैं इन मांगोंके सम्बन्धमें आपको पत्र लिखूँ । मैं कोई दूसरा काम नहीं कर सकता । इसमें विलम्ब न करके जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी आप अपनी दलीलें सबकी समझमें आ सकें इस


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