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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ कि ऐसे अनुयायियोंको उचित है कि वे छिपे न रहकर सामने आयें और अपनी निष्ठाकी घोषणा करें ।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६६०८) की फोटो - नकलसे ।

२८०. स्वदेशी व्रत[१]

मई १३,[२]

शुद्ध और मिश्र व्रत क्या व्रतपर हस्ताक्षरकर्त्ता[३]

}} स्वदेशी-व्रत लेनेकी पहली चर्चा छ: तारीखको, जब हजारों पुरुष और कुछ स्त्रियाँ समुद्र-तटपर एकत्र हुए, उस समय हुई थी; परन्तु उस समय व्रत नहीं लिया गया। अब स्वदेशीकी चर्चा खूब हो चुकी है और हमें दिशा भी मालूम हो गई है । स्वदेशी-व्रत लेना हमारा धर्म है । भारतकी सच्ची खुशहाली इसीमें है । भारतमें उत्पन्न होने और बननेवाली चीजोंका उपयोग छोड़कर भारतसे बाहरकी चीजोंका इस्तेमाल करना भारत के साथ घात करनेके बराबर है, अनुचित विलासिता है। जो वस्तु हमारे देशमें पैदा हो सकती हो, वह हमें पसन्द न आये और इसलिए हम विदेशी वस्तु काममें लें, यह तो विदेशी बन जानेके बराबर है । दूसरे देशकी आबोहवा और जमी- नकी अपेक्षा हमारे देशकी आबोहवा और हमारे देशकी जमीन घटिया होनेपर भी जैसे हम उनका त्याग नहीं कर सकते, वैसे ही साफ है कि हम अपने देशकी बनी वस्तुओंका भी त्याग नहीं कर सकते । सन् १९१७-१८ में लगभग सत्तावन करोड़ रुपयेका विदेशी सूती माल भारतमें आया था और चार करोड़से ऊपरका रेशम आया था । हमारी आबादी तीस करोड़ है, जिसका मतलब हुआ कि हमने उस वर्ष प्रति व्यक्ति दो रुपये बाहर भेज दिये । इसका परिणाम देशके लिए भुखमरी ही है। तीन करोड़से ज्यादा आदमियोंको हिन्दुस्तानमें मुश्किलसे एक जून खानेको मिलता है । जब भारतमें घर-घर रुईकी कताईका काम होता था और हजारों मनुष्य कपड़ा बुनते थे, उस समय ऐसी भुखमरी असम्भव रही होगी । किन्तु लोग जब अपने धर्ममें चूकें, उस समय यदि भुखमरी आदि संकट पैदा हों, तो इसमें क्या आश्चर्य ! इन बुराइयोंका एक इलाज स्वदेशी-व्रत ही हो सकता है, इसलिए नीचे बताया हुआ व्रत तैयार किया

 
  1. १. स्वदेशीके विषयपर प्रकाशित होनेवाली यह पहली पुस्तिका थी । देखिए “स्वदेशी व्रत ", १६-६-१९१९ ।
  2. महादेवभाईनी डायरीमें१४ तारीख है ।१९१९
  3. हस्ताक्षरकर्ताओंमें पहला और दूसरा नाम क्रमशः गांधीजी और कस्तूरबाका था । अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं में विनोवा भावे भी शामिल थे ।