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स्वदेशी व्रत


गया है । उसमें दो प्रकारके व्रत बताये गये हैं । पहला व्रत अधिक शुद्ध स्वदेशी व्रत है । परन्तु सबसे शुद्ध व्रत तो वही है, जिसमें इस व्रतको लेनेवाले हाथ कते सूतके, हाथ से बुने हुए कपड़े ही पहनें। बुनाईका धन्धा अस्तव्यस्त हो जानेसे इस समय यह व्रत लेना लगभग असम्भव है, परन्तु पहला व्रत लेनेवाले लोग स्वदेशीको अपना लक्ष्य बना लेंगे तो थोड़े ही समयके भीतर हम पर्याप्त मात्रामें हाथ-बुना कपड़ा प्राप्त कर सकेंगे। मैं पहले ही बता चुका हूँ कि स्वदेशी और विदेशीके बहिष्कारमें बहुत बड़ा अन्तर है ।[१]मुझे तो विश्वास है कि बहिष्कारसे भारतका कोई लाभ नहीं होगा। वह तो नाककी मक्खी उड़ानेके लिए अपनी नाक काट डालने के समान है । क्या हम रौलट विधेयक रूपी बुराईको मिटानेके लिए अंग्रेजी मालका बहिष्कार करके जापानके लिए अपने द्वार खोल देंगे ? हकीकत तो यही है कि स्वदेशीका रौलट कानूनके विरुद्ध आन्दोलनसे कोई सम्बन्ध नहीं है । जब सत्याग्रह जैसा बड़ा आन्दोलन चलता है तब लोग अपने कर्त्तव्यका विचार करने लग जाते हैं । यही बात स्वदेशीके बारेमें हुई है। रौलट कानून मिट जायेंगे, भारत ब्रिटिश साम्राज्यमें एक प्रतिष्ठित हिस्सेदारकी स्थिति का उपभोग करने लगेगा, तब भी हमें स्वदेशी व्रतका पालन तो करना ही पड़ेगा । उस समय हमारा स्वदेशी व्रत आज जैसा सीमित नहीं होगा, बल्कि और अधिक व्यापक होगा, क्योंकि तब हम अपनी बहुत-सी जरूरतें भारतमें ही पूरी कर लेनेकी शक्ति रख सकेंगे। इस स्वदेशी व्रतमें हम अंग्रेज भाइयोंसे भी शरीक होनेका अनुरोध करेंगे।[२]

लाखों स्त्री और पुरुष स्वदेशी व्रतका पालन कर सकें, इसके लिए व्यापारिक ईमानदारीकी पूरी तरह जरूरत होगी । मिल मालिकोंको स्वदेशीपर प्रीति रखकर अपने भाव तय करने होंगे । बड़े या छोटे सभी व्यापारियोंको ईमानदारी बरतनी होगी । छोटे-छोटे दुकानदार जिनसे करोड़ों गरीब लोग कपड़ा खरीदते हैं, जबतक ईमानदार नहीं बनेंगे, तबतक स्वदेशी व्रत आगे बढ़ ही नहीं सकता, इसमें हमें जरा भी शक नहीं है । देशमें व्यापारियोंको भी स्वदेशाभिमानका जोश आ गया है और वे देशके कल्याणके लिए अपने व्यवहारमें गरीबोंपर दया करके सचाई रखेंगे, इस विश्वासपर ही स्वदेशी आन्दोलन संगठित करनेवालोंने यह व्रत लोगोंके सामने रखनेका निश्चय किया है।

जिनके पास अभी विदेशी कपड़े हैं, उन्हें व्रत लेनेमें संकोच होता दिखाई पड़ता है । यह बात वैसे तो स्वाभाविक है, किन्तु दुःखद भी है । स्वदेशी व्रतके हम बड़े परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं । वे परिणाम त्याग किये बिना हरगिज प्राप्त नहीं हो सकते। यह आशा भी रखी जाती है कि स्वदेशी व्रतके साथ-साथ सादगीकी भावना भी उत्पन्न होगी । सादे और अधिक टिकाऊ कपड़े खरीदकर लोग रुपयेकी बचत करेंगे और विदेशी कपड़ोंके त्यागसे होनेवाले घाटेको थोड़े ही असमें पूरा कर सकेंगे । यह चेतावनी दे देनेकी जरूरत है कि कोई स्वदेशी कपड़ोंका भण्डार एकदम न भर ले। भारतमें इतना कपड़ा तो तैयार नहीं है कि हम सब, चार-चार, पाँच-

  1. देखिए “स्वदेशी व्रत-११, ८-४-१९१९ ।
  2. . देखिए “पत्र : सर स्टैनली रोडको", ३०-४-१९१९ और “पत्र : जे० एल० मैफीको ", ५-५-१९१९ /