मेरी तन्दुरुस्ती मेरे काम लायक ठीक रहती है । दो वक्त बकरीका दूध और तीन बार फल खाता हूँ । शारीरिक शक्ति कम है, परन्तु मानसिक शक्तिमें जरा भी कमजोरी आयी हो, ऐसा नहीं जान पड़ता। सुबहके छः बजेसे रातके दस बजेतक किसी-न-किसी काममें लगा ही रहता हूँ । दिनमें ३०-४० मिनिट सोये बिना अब काम नहीं चलता । इतना काम करनेपर भी [ रातके] १० बजे जितनी चाहिए, उससे ज्यादा थकावट दिमागको महसूस नहीं होती। लड़ाई छिड़ी हुई है। कानून-भंग कुछ समय बाद फिर शुरू होगा । अनुभव कुछ नये और कुछ पुराने ज्योंके-त्यों मिलते रहते हैं । आशा-निराशाका हिसाब लगभग बराबर रहा है ।
तुम्हारे पत्र तो प्रायः आते रहते हैं, परन्तु मणिलाल आलस्य दिखा रहा है । उसके मुकदमेका तो उसने या तुमने कोई समाचार ही नहीं दिया। इस मुकदमे में मणिलालने स्वयं क्या सफाई दी, यह जाननेकी उत्सुकता है । यद्यपि मणिलालको पत्र लिखना चाहता हूँ, फिर भी शायद रह जाये, इसलिए यह पत्र तो उसे भेज ही देना । तुम दोनों भाइयोंके चित्र भेज दो, तो अच्छा। कुछ पढ़ते हो ? प्रातः स्मरण करते हो ? न करते हो, तो फिर याद दिलाता हूँ कि अवश्य करना, क्योंकि मेरा विश्वास है कि वह बहुत ही श्रेयस्कर है। इसका मूल्य तुम्हें संकट पड़नेपर मालूम होगा तथा विचारपूर्वक किये गये प्रातःस्मरण और संध्यादिकी कीमत तो दिन- प्रतिदिन लगाई जा सकती है। यह तो अपनी आत्माको भोजन देना है । जैसे शरीर भोजनके बिना सूख जाता है, वैसे ही आत्मा भी यदि उसे उचित भोजन न मिले तो मुरझा जाती है ।
बापूके आशीर्वाद
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५
३०७. पत्र : मगनलाल गांधीको
अहमदाबाद
जून १, १९१९
तुम्हारे बीजापुर जानेका समाचार मैंने यहाँ आनेपर सुना । यह ठीक हुआ । हालाँकि मैं तुमसे मिलनेको उत्सुक था । सूतके बारेमें मेरी आलोचना तुम्हें उलाहना देनेके लिए नहीं थी । तुम्हें उलाहना मैं कैसे दे सकता हूँ; वह तो तुम्हें अधिक सचेत करनेके लिए थी। वह इसलिए थी कि सूत कातनेका जो मूल्य मैंने लगाया है, वही तुम लगाओ। मेरे कहनेका आशय यह था और अब भी है, दूसरे जो भी काम कम किये जा सकें, उन्हें कम करनेकी कोशिश की जाये। कौन-सा काम कौन कम कर सकता है, यह तो तुम ही विचार करके कह सकते हो । स्वदेशी सूतके खूब कपड़े बनवाकर तैयार कराओ, मेरी यह माँग पहले थी अवश्य । पर मैं तो