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पत्र : रामदास गांधीको


होगा ही नहीं । परन्तु [ इसके अलावा ] मैं यह चाहता हूँ कि तुम ऐसी जगह दुगुनी मेहनत करके, दुगुनी सावधानी बरतते हुए इस प्रेमका कुछ प्रतिदान दो । सम्बन्धी या मित्रके यहाँ नौकरी करनेमें जितना लाभ है उतना ही अलाभ । लाभ तो यह है कि वहाँ हम कुछ सुविधाएँ भोग सकते हैं, जो हमें परायोंकी नौकरीमें नहीं मिल सकतीं । हानि यह है कि उनकी सरलता के कारण हम उसका दुरुपयोग कर सकते हैं और कामसे जी चुरानेके लालच में फँस सकते हैं । मेरी इच्छा है कि तुम अत्यन्त सावधानीसे रहो । इसके साथ ही मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि मुझे तुम्हारे बारेमें कोई डर नहीं है । मैंने अनुभव किया है कि तुम प्रेमपात्र हो और मुझे विश्वास है कि तुम्हें वहाँ यश ही मिलेगा। दुकानका सारा काम अपना समझकर करना । जो न आये, उसे तुरन्त पूछ लेना । शर्मके मारे अपने अज्ञानको जरा भी न छिपाना । जब में दक्षिण आफ्रिकामें पहले-पहल पहुँचा, तब यह नहीं जानता था कि पी० नोट क्या है। दो-चार दिन तो मैंने अपने अज्ञानको छिपाया, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गये वैसे मेरी घबराहट बढ़ती चली गई । और मैंने देखा कि जबतक यह न जान लूँ कि पी० नोट क्या होता है, तबतक मैं दादा अब्दुल्ला सेठका मामला नहीं जान सकता। इसलिए मैंने अपने तद्विषयक अज्ञानको तुरन्त प्रकट कर दिया और यह जानकर कि पी० नोटका मतलब प्रॉमिसरी नोट है, तो मैं खिलखिलाकर हँस पड़ा- अपने अज्ञानपर नहीं, बल्कि अपनी झूठी शर्मपर; क्योंकि पी० नोट शब्द तो मुझे शब्दकोशमें भी नहीं मिल सकता था । इसलिए हमारे लिए राजमार्ग एक ही है कि जिस बातका हमें पता न हो, उसके बारेमें तुरन्त पूछ लें। हम मूर्ख माने जायें, इसमें हर्ज नहीं किन्तु अपने अज्ञानसे हम भूल करें, यह सचमुच आपत्तिजनक है । तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा होगा। तुम वहाँ शान्तिसे रहना और ईमानदारीसे जो कुछ कमा सको, कमाना । अपने विचार और अपनी इच्छाएँ मुझे बताना । बा मुझे कई बार कहती है कि रामदास अब बड़ा हो गया, उसे बुलवाकर उसकी शादी कर देनी चाहिए। मैंने तुम्हें बुलानेसे साफ इनकार कर दिया है और बासे यह कहा है कि अगर तुम्हारी शादी करनेकी इच्छा होगी, तो तुम मुझसे साफ-साफ कह दोगे। मैंने बाको यह भी बता दिया है कि इस सम्बन्ध में मैंने तुमसे जो कुछ कहना चाहो, स्पष्ट कहनेको कहा है। इससे वह शान्त हो गई है। इस महाकठिन कालमें हिन्दुस्तानकी ऐसी विपन्न और विपरीत दशामें किसी भी भारतीयको विवाह करनेका विचार नहीं करना चाहिए, यह [ आजकी स्थिति में ] उसका एक विशेष धर्म या आपत्कालीन धर्म है; ऐसा मैं कई बार कह चुका हूँ । इसलिए साधारणतः मैं तुम्हारे लिए यही चाहूँगा कि तुम संयमका पालन करो और जीवनपर्यंत अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करो। ज्यों-ज्यों दिन बीतेंगे, त्यों-त्यों विषयवृत्ति क्षीण होगी, तुम्हारा शरीर-बल और मनोबल बढ़ेगा तथा तुम विवाह करनेकी बात भूल जाओगे । परन्तु यह तो मैंने अपने पैमानेसे तुम्हें मापा है । मैंने तुम्हें वचन दिया है कि मेरे विचार चाहे कुछ भी हों, फिर भी यदि तुम शादीका विचार करोगे, तो मुझसे जितनी बन सकेगी, तुम्हारी सहायता करूँगा । इसलिए तुम निर्भयतापूर्वक मुझपर विश्वास करते हुए तुम्हारी इच्छा विवाह करनेकी हो तो जाहिर कर देना । इस मामलेमें तुम यह भूल जाना कि मैं तुम्हारा पिता हूँ; मुझे अपना एक भला मित्र मात्र समझना और मित्रकी परीक्षा लेना ।