पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायेगा । अगर हम इसे संजीवन दे सके तो समझो कि हमने एक महान् कार्य सिद्ध कर लिया ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ७३२९) की फोटो नकलसे ।

३०९. पत्र : सोंजा श्लेसिनको

जून २, १९१९

प्रिय कुमारी श्लेसिन,

रामदासने मुझे खबर दी है कि तुम अपनी शिक्षकीय परीक्षामें कुछ सम्मान के साथ उत्तीर्ण हुई हो। मैं जानता हूँ कि तुम मेरी बधाईकी अपेक्षा नहीं रखतीं। मुझे तो इतनी ही उत्सुकता है कि तुम जल्दीसे-जल्दी अपनी अन्तिम परीक्षा उत्तीर्ण कर लो, क्योंकि मैं तुमसे निकट भविष्य में भारत आकर अपना काम सँभालनेकी आशा रखता हूँ । यहाँ गरमी सख्त होती है, परन्तु जाड़े में उसकी काफी ठीक भरपाई हो जाती है । मेरा खयाल है बिना किसी दिक्कतके तुम्हारी जरूरतें पूरी हो जाती होंगी । और जरूरत पड़े तो मुझसे कहने में संकोच न करना ।

सत्याग्रह अच्छी तरह चल रहा है । थोड़े ही समय में सविनय अवज्ञा शुरू होनेकी आशा है । अनेक कारणोंसे मैं बार-बार यह चाहता हूँ कि तुम यहाँ रहो । परन्तु मुझे अपनी मंजिल अकेले ही तय करनी है। जब दक्षिण आफ्रिकाके अपने साथियोंकी याद आती है, अक्सर उदास हो जाता हूँ । यहाँ मेरे पास न डोक हैं न कैलेनबैक, यह भी नहीं जानता, इस समय कैलेनबैंक कहाँ हैं । पोलक इंग्लैण्डमें हैं । काछलिया और सोराबजीकी जगह लेनेवाला भी कोई नहीं है । रुस्तमजी-सा दूसरा व्यक्ति मिलना तो असम्भव ही है । यह कुछ विचित्र-सा लग सकता है, मगर दक्षिण आफ्रिकासे मुझे यहाँ ज्यादा अकेलापन महसूस होता है । इसका अर्थ यह नहीं है कि यहाँ मुझे साथी नहीं मिले । परन्तु उनमें से बहुतोंके और मेरे बीच ऐसा पूरा आन्तरिक सम्बन्ध नहीं बना जैसा कि दक्षिण आफ्रिकाके साथियोंके साथ बन गया था । आप सबके साथ जो सुरक्षाकी भावनामैं अनुभव कर सकता था, वह यहाँ नहीं कर सकता । यहाँ लोगोंको मैं नहीं पहचानता, वे मुझे नहीं पहचानते । यदि यही सब सोचता रहूँ तो उदास हो जाऊँ । परन्तु मैं ऐसी चिन्ता नहीं करता। इसकी मुझे फुरसत ही नहीं है । अभी जरा समय मिल गया, तो लिख डाला | रामदासके पत्रसे मुझे स्मरण हुआ कि तुम दक्षिण आफ्रिकामें हो और मैं अपने अन्तरकी गहराईमें पड़े हुए विचारोंको तुमसे कहकर सुखी हो गया। परन्तु बस अब इतना ही ।

[ अंग्रेजीसे ]

मूल पत्र (एस० एन० ६६३५ ) की फोटो - नकलसे ।